दिल्ली की मंत्री आतिशी ने शहर में एक जमावड़े को संबोधित करते हुए कहा, "आज सत्य की जीत हुई है" और यह कहते-कहते वे रो पड़ीं. यह 9 अगस्त को उस वक्त की बात है जब खबर आई ही थी कि आप के दूसरे नंबर नेता मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है. सिसोदिया आबकारी नीति या 'शराब घोटाले' – इस पर निर्भर है कि आप किस राजनैतिक नजरिये से इसे देखना चाहते हैं - के केस में गिरफ्तारी के बाद पिछले 17 महीनों से जेल में थे.
आबकारी महकमे के भी प्रभारी रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की तरफ से दर्ज इस मामले के केंद्र में हैं. आरोप है कि पार्टी ने कुछ चुनिंदा लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए नई आबकारी नीति बनाई और सैकड़ों करोड़ रुपए की रिश्वत ली गई.
यह दिल्ली के चुनाव से बमुश्किल छह महीने पहले उस पार्टी के लिए नया जीवनदान था जिसके मुख्य नेता पिछले दो सालों के दौरान कई चरणों में जेल में रहे हैं (आप सुप्रीमो और मुख्य रणनीतिकार अरविंद केजरीवाल अब भी सीखचों के पीछे हैं).
जमानत का मतलब बरी होना नहीं है. लेकिन सिसोदिया मानते हैं कि जमानत के बाद कोई मामला ही नहीं है. जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, "पूरा मामला जमानत को लेकर था क्योंकि इसमें कोई दम नहीं है. इसीलिए उन्होंने करीब 20,000 पन्नों की चार्जशीट तैयार की और गवाहों की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त बनाई. यह सब मामले को घसीटते रहने और जमानत का विरोध करने के लिए था (देखें इंटरव्यू: राजनीति एक लंबा गेम है)." सिसोदिया का मानना है कि धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधान केवल इसलिए लगाए गए ताकि जमानत मिलना मुश्किल हो. वे कहते हैं, "इस किस्म के कानून का इस्तेमाल आतंकवादियों की फंडिंग रोकने के लिए किया जाता है, यह आम लोगों को जमानत देने से इनकार करने के लिए नहीं है."
Diese Geschichte stammt aus der September 11, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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