सावन का आसमान बादलों से लदा है. हरियाणा में करनाल से दसेक किलोमीटर दूर काछवा गांव में घुसती सड़क. सुबह-सुबह बुग्गी पर चारा लेकर धान के लहलहाते खेतों के बीच से लौटते दाढ़ी खुजाते किसान को घर पहुंचने की जैसे कोई जल्दी नहीं. लेकिन वहां से ढेला मारने भर की दूरी पर पंचायत भवन के कैंपस में सरदार वल्लभभाई पटेल पुस्तकालय के सामने कंधे पर कंपिटिशन की किताबों का बैग लिए खड़ीं पूजा कश्यप की बेसब्री साफ दिख रही है. उन्हें बैठकर पढ़ना है पर 15 मिनट से वे ताला खुलने के इंतजार में हैं. दो साल से यहीं आकर तैयारी कर रहीं, एक भूमिहीन परिवार की, 26 की हो चुकीं पूजा को सचमुच देर हो रही है. "पापा और भइया मजदूरी करते हैं. उन्होंने पढ़ने की आजादी दे रखी है. पर क तक ? जल्दी ही मुझे कुछ हासिल करना होगा." अंग्रेजी में एमए करने के बाद उन्हें इसी सितंबर जेबीटी (जूनियर बेसिक टीचर) का एग्जाम देना है. सुबह की शिफ्ट की लाइब्रेरियन 35 वर्षीया पूनम सिरोही के आकर ताला खोलने पर वे तुरंत घुसकर एक कुर्सी पकड़ती हैं और किताबें निकालते हुए बात जारी रखती हैं, "12 साल बाद जेबीटी में 1,500 भर्तियां निकली हैं." पड़ोस के सगा गांव के 23 वर्षीय हैप्पी सिंह भी बीए करके यहां शॉर्ट हैंड की प्रैक्टिस करते हैं. उनके पिता फेरी लगाकर कपड़े बेचते हैं. लाइब्रेरी के एक छोर पर 30 वर्षीय लखविंदर सुमित अरोड़ा की कंप्यूटर विद पायथन के पन्नों में खोए हैं. यूपीएससी, एचसीएस और एचटीईटी वगैरह की तैयारी सिर पर है.
मौके पर मौजूद 15-20 छात्र-छात्राओं के चेहरे पर और उनकी भंगिमाओं में कठिन वर्तमान और धुंधले भविष्य का ऊहापोह साफ पढ़ा जा सकता है. सुकून यही है कि सुबह 8-9 बजे से शाम 7-8 बजे तक कुर्सी-मेज, कंप्यूटर, एसी युक्त चारेक हजार किताबों वाली चार साल पहले खुली यह हाइब्रिड लाइब्रेरी उनके अपने गांव में, वह भी मुफ्त उपलब्ध है. उनका हौसला उन दसेक युवाओं को देखकर बढ़ा है। जो यहीं से तैयारी करके पुलिस, रेलवे, बिजली महकमे और पानीपत रिफाइनरी में नौकरी हासिल कर पाए हैं.
Diese Geschichte stammt aus der September 11, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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