प्रः सितार से जुड़ी आपकी पहली स्मृति क्या है?
छह साल की उम्र थी जब बंबई में जहांगीर आर्ट गैलरी के किसी प्रोग्राम के लिए सितार बजाया था. वे लोग आए थे उस्ताद विलायत खान से कोई कार्यक्रम करवाने, लेकिन अब्बा ने कहा कि आप शुजात से बजवा लें. मुझे याद है, तबले पर निजामुद्दीन खान साहब थे. मैंने राग देस बजाया था. उसके बाद दस साल की उम्र तक साल के 12-15 प्रोग्राम करने लगा था.
• उस्ताद विलायत खान आपके पिता और गुरु दोनों थे. गुरु पर कभी पिता का असर पड़ता था?
बतौर गुरु, उस्ताद विलायत खान साहब आज भी मेरे लिए खुदा हैं. दुनिया जानती है कि वे एक महान कलाकार थे, उनके अनगिनत चाहने वाले थे. वे हमेशा अपने चाहने वालों से घिरे रहते थे. शायद इसीलिए वे अक्सर भूल जाते थे कि उनके बेटे को उसका पिता भी चाहिए होता था. कभी पीठ पर पिता की तरह थपकी नहीं दी, इसलिए एक बाप और बेटे के बीच जो भरोसा होता है वह नहीं पनप सका. यही वजह रही होगी कि मैं सतरह साल की उम्र में घर से निकल गया.
• और घर छोड़कर जाने के बाद क्या किया?
मेरा निकलना एकदम गुस्से में बताकर निकलने जैसा नहीं था. कोई प्रोग्राम बता दिया और महीनों घर नहीं आया. जो काम मिला, करता रहा. 1978 में न्यूयॉर्क में बस धोने का काम किया, फ्लोरिडा में संतरों के बगीचों में काम किया, मछली पकड़ने वाली नावों पर काम किया, ऐसे ही काम जिनका म्यूजिक से कोई लेना-देना न था. पर जिंदा रहने के लिए पैसे तो चाहिए थे.
• लेकिन आप तो सीखे-सिखाए कलाकार थे! म्यूजिक इंडस्ट्री में या लाइव परफॉर्मेंस का काम आप तक नहीं पहुंचता था?
बचपन से मुझमें खुद्दारी की भावना बहुत ज्यादा रही. पूरी दुनिया में आपको एक भी आदमी ऐसा न मिलेगा जो यह कह दे कि जात उसके पास काम मांगने आया था. न, आपको मेरा काम चाहिए तो सम्मान से मुझे कहना पड़ेगा. बैकग्राउंड म्यूजिक में मैं आर. डी. बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओ. पी. नैयर वगैरह के साथ काम करता था. किशोर कुमार, मोहम्मद रफी के लिए काम करके पैसे कमा लेता था लेकिन काम हमेशा रहता नहीं था. मुझे काम लोग इसलिए भी नहीं देते थे कि कहीं विलायत खान साहब को बुरा न लग जाए. अपनी जिद की वजह से मैंने जिंदगी में बहुत बुरा दौर भी देखा.
Diese Geschichte stammt aus der October 09, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der October 09, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
सबसे अहम शांति
देवदत्त पटनायक अपनी नई किताब अहिंसाः 100 रिफ्लेक्शन्स ऑन द सिविलाइजेशन में हड़प्पा सभ्यता का वैकल्पिक नजरिया पेश कर रहे हैं
एक गुलदस्ता 2025 का
अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड जैसी चर्चित किताब के लेखक युवाल नोआ हरारी की यह नई किताब बताती है कि सूचना प्रौद्योगिकी ने हमारी दुनिया को कैसे बनाया और कैसे बिगाड़ा है.
मौन सुधारक
आर्थिक उदारीकरण के देश में सूत्रधार, 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
हिंदुस्तानी किस्सागोई का यह सुनहरा दौर
भारतीय मनोरंजन उद्योग जैसे-जैसे विकसित हो रहा है उसमें अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी आने, वैश्विक स्तर पर साझेदारियां बनने और एकदम स्थानीय स्तर के कंटेंट के कारण नए अवसर पैदा हो रहे. साथ ही दुनियाभर के दर्शकों को विविधतापूर्ण कहानियां मिल रहीं
स्वस्थ और सेहतमंद मुल्क के लिए एक रोडमैप
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में हमारी चुनौतियों का पैमाना विशाल है. 'स्वस्थ और विकसित भारत' के लिए मुल्क को टेक्नोलॉजी के रचनात्मक उपयोग, प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन, बिग डेटा और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर कहीं ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा
ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2025 में भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने, नवाचार, उद्यमिता और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक का काम कर रही
ईवी में ऊंची छलांग के लिए भारत क्या करे
स्थानीयकरण से नवाचार तक... चार्जिंग की दुश्वारियां दूर करना, बैटरी तकनीक बेहतर करना और बिक्री के बाद की सेवाएं बेहतर करना ही इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति को मजबूत करने का मूल मंत्र है
अब ग्रीन भारत अभियान की बारी
देशों को वैश्विक सफलता का इंतजार करने के बजाए जलवायु को बर्दाश्त बनने के लिए खुद पर भरोसा करना चाहिए
टकराव की नई राहें
हिंदू-मुस्लिम दोफाड़ अब भी जबरदस्त राजनैतिक संदर्भ बिंदु है. अपने दम पर बहुमत पाने में भाजपा की नाकामी से भी सांप्रदायिक लफ्फाजी शांत नहीं हुई, मगर हिंदुत्व के कट्टरपंथी तत्वों के खिलाफ आरएसएस की प्रतिक्रिया अच्छा संकेत
महिलाओं को मुहैया कराएं काम के लिए उचित माहौल
यह पहल अगर इस साल शुरु कर दें तो हम देख पाएंगे कि एक महिला किस तरह से देश की आर्थिक किस्मत बदल सकती है