पिछले दो विधानसभा चुनाव से दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) और इसके नेता अरविंद केजरीवाल प्रदेश की मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और लंबे समय तक यहां की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस के किसी भी नेता के मुकाबले काफी आगे दिखते रहे हैं. यही वजह है कि इस समय भाजपा और कांग्रेस दोनों में इस बात को लेकर माथापच्ची चल रही है कि तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा.
भाजपा 2015 में पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन तब पार्टी तो चुनाव हारी ही, बेदी भी अपनी सीट नहीं बचा पाई थीं. तब पार्टी को 70 विधानसभा सीटों में से महज तीन पर जीत मिली थी. कांग्रेस की हालत तो इससे भी बुरी थी. अजय माकन के नेतृत्व में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.
2020 के विधानसभा चुनाव में जहां आप को 53.57 फीसद वोट मिले थे, वहीं भाजपा के खाते में 38.51 फीसद वोट आए थे. 2015 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोटों में 6.21 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी. ऐसे में भाजपा की योजना यह है कि वह इस बार केजरीवाल और आप नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का मुद्दा अगर आक्रामक ढंग से उठाती है और अपनी वोट हिस्सेदारी को पांच से छह फीसद और बढ़ाने में कामयाब होती है तो दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी को कड़ी टक्कर दे सकती है.
इस पृष्ठभूमि में भाजपा के अंदर एक बात यह भी चल रही है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री आतिशी के सामने भाजपा के चुनाव अभियान का नेतृत्व किसी महिला के हाथों में ही होना चाहिए. जो नेता इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं, उनका तर्क है कि भले ही आप इस चुनाव को केजरीवाल बनाम भाजपा या मोदी करने की कोशिश करे लेकिन पार्टी को यह चुनाव आतिशी बनाम अपनी किसी महिला नेता की लाइन पर ले जाने की कोशिश करनी चाहिए.
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