सतारूढ़ पार्टी के जीत के जश्न अब देश के लिए जाने-पहचाने हो गए हैं. दिल्ली में तो बजते ही हैं, इस बार महाराष्ट्र में भी भाजपा के मुख्यालय पर ढोल बजे, पटाखे फूटे, और हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के अथक मेहनती कार्यकर्ताओं और श्रमजीवियों को हर बार की तरह धन्यवाद दिया. इस जून में हुए आम चुनाव में जबरदस्त मायूसी के बाद - जब भाजपा बहुत तकलीफदेह ढंग से अपने दम पर साधारण बहुमत से पीछे रह गई थी- पार्टी बंधेबंध ढर्रे पर लौट आई है.
लोकसभा चुनाव में हार का एक बड़ा कारक रहे महाराष्ट्र की कायापलट जीत ने मोदी का जादू कम होने को लेकर या भाजपा की चुनाव मशीनरी की बुनियादी सामर्थ्य पर किसी भी तरह के संदेह मिटा दिए. पार्टी की अगुआई में महायुति गठबंधन ने चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की. खुद भाजपा ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 जीत लीं (तकरीबन 90 फीसद की सफलता दर ). यह पांच महीने पहले लोकसभा की 28 में नौ सीटें जीतने से बहुत अलग था. झारखंड के नतीजों से भले कुछ ऐंठन और मरोड़ पैदा हुई हो पर महाराष्ट्र जीतने के राष्ट्रीय प्रभाव और भारत की अर्थव्यवस्था पर उसके भीमकाय असर ने हर चीज को फीका कर दिया है. भाजपा के उत्साही समर्थकों के लिए ये वाकई खुशी के महीने रहे, जो दशक भर की सत्ता - विरोधी भावना के बावजूद हरियाणा की चमत्कारिक जीत और अनुच्छेद 379 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर के पहले विधानसभा चुनाव में काबिले तारीफ प्रदर्शन से शुरू हुए थे. इस सबने यह भी पक्का कर दिया कि मोदी 3.0 हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाता रह सकता है, जबकि उसके पास इतनी गुंजाइश भी है कि संसद में कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष की तरफ से फेंकी गई किसी भी गुगली को चकमा दे सके.
कहा-सुना सब माफ
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