
जयपुर से महज 12 किलोमीटर दूर और हरियाली भरे अरावली की गोद में स्थित गलता पीठ मंदिरों का एक परिसर है, जो 15वीं - 16वीं शताब्दी से वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र रहा है. यह पीठ पारंपरिक तौर पर वैष्णव धर्म के रामानुज संप्रदाय के नियंत्रण में रही है. सारे विवाद की जड़ बने रामोदराचार्य, जिन्हें 1943 में जयपुर रियासत की तरफ से गठित एक समिति ने महंत नियुक्त किया था. कानूनी बाध्यताओं के मद्देनजर पीठ को 1963 में राजस्थान पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत पंजीकृत कराने के बाद उन्हें महंत पद को वंशानुगत बनाने की भी अनुमति दे दी गई. अनेक लोगों की नजर में यह मंदिर नियमों के खिलाफ था. रामोदराचार्य ने 1999 में ट्रस्ट के नियमों में और बदलाव किया और इसे पारिवारिक प्रबंधन में ला दिया. इससे यह पक्का हो गया कि मंदिर की संपत्ति पर उनके वंशजों का ही नियंत्रण होगा. मामला अदालत में पहुंच गया और मांग की गई कि सरकार गलता पीठ को अपने नियंत्रण में ले ले.
पिछले 20 साल से एक अन्य प्रमुख वैष्णव संप्रदाय रामानंदी की तरफ से गलता पर दावा जताया जा रहा है. उसके लोगों की दलील है कि महंत विवाह नहीं कर सकता. रामानुज परंपरा मठाधीश को विवाह की अनुमति देती है, जबकि रामानंदी संप्रदाय में महंतों के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है. हालांकि, यह बात अच्छी तरह दर्ज है कि गलता महंतों की पिछली कई पीढ़ियां विवाहित रही हैं और बतौर उत्तराधिकार उन्हें इस गद्दी के लिए चुना गया है.
बखेड़ों की पीठ
रामानंदी और रामानुज दोनों संप्रदाय गलता पीठ पर दावा करते हैं; विवाद का पेच मंदिर की संपत्ति पर नियंत्रण और महंत की वंशानुगत नियुक्ति को लेकर है.
Diese Geschichte stammt aus der December 25, 2025-Ausgabe von India Today Hindi.
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