व्यूफाइंडर-तमाशा मेरे आगे
जगदीश यादव
प्रकाशन | मानक पब्लिकेशन
पृष्ठ: 145 मूल्य: 1,000 रुपये
या अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को ‘‘पत्रकारों को ऐसे निशाना बनाया गया मानो वे कारसेवकों के कट्टर दुश्मन हों।’’ या ऐसे ही अनगिनत किस्से कोई करीब से खींची गई खास तस्वीरों और किस्सागोई की शैली में उस दौर के सुनाए, जब देश की राजनीति, समाज, अर्थनीति सब करवट बदल रही थी तो यकीनन दिलचस्प ही नहीं, नए उद्घाटन की तरह होगा। वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट जगदीश यादव ऐसी ही अनेक कहानियां और छवियां अपनी किताब व्यूफाइंडर: तमाशा मेरे आगे में लेकर आए हैं। वे उन सियासी घटनाओं के बेहद करीबी गवाह रहे हैं, जो उनकी न्यूज फोटोग्राफी के करीब आधी सदी का एक सफरनामा भी है।
ये सिर्फ सियासी घटनाओं की छवियां नहीं हैं, बल्कि इन किस्सों में नेताओं के व्यक्तिगत जीवन, आचार-व्यवहार, उनकी राजनैतिक प्रतिबद्धताओं और महत्वाकांक्षाओं के भी अक्स हैं। कुछ छोटी-छोटी वक्र टिप्पणियां, ब्यौरे और बोलती तस्वीरें भी बेहद सहजता से जैसे सच को उद्घाटित करती चलती हैं। कुछ बेहद मार्मिक और मानवीय पल भी कैद हैं, जो आज विरले ही देखने को मिलते हैं। खासकर नई और करिअर पसंद पीढ़ी के लिए यह अजूबा और चकित करने वाला हो सकता है।
Diese Geschichte stammt aus der October 14, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
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