पिछले 25 साल में हमारे दैनिक उपयोग के जितने ज्यादा उपकरण आए हैं उनके हिसाब से हमारी भाषा में भी नए-नए शब्द आए हैं। कई ऐसे उपकरण, सेवाएं और शब्द हैं जिनके बगैर आज रोजमर्रा की जिंदगी की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। इन्होंने हमारी जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है, लेकिन हर सुविधा अपने साथ खतरे भी लेकर आती है। इन बदलावों के बावजूद गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, स्त्री हिंसा, सांप्रदायिकता, जातिवाद, बिचौलियों के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा है, बल्कि इजाफा ही हुआ है। आधुनिक उपकरणों से लैस श्रमहीन जीवन नए रोगों की चपेट में आया है तो सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा भी बढ़ी है। जीवन को सुविधाओं के दुश्चक्र में फंसाने वाली ऐसी 25 चीजें, जहां से लौटना असंभव है।
मोबाइल फोन
नई सदी में जितनी भी तकनीकी प्रगति हुई है, उनमें ज्यादातर का वाहक मोबाइल फोन है। भारत में नोकिया मोबाइल 1995 में आया था। उसके बाद सीमेन्स, मोटरोला ने मोबाइल फोन बाजार में उतारा। 2004 से पहले तक इनकमिंग कॉल के भी पैसे लगते थे और मोबाइल बहुत कम लोगों के पास होता था। फिर रिलायंस ने जब पांच-पांच सौ रुपये में मोबाइल फोन को सुलभ बनाया तो अचानक सब कुछ बदल गया। लोगों को मोबाइल फोन की इस तरह आदत लगी।
उस समय सीडीएमए और जीएसएम दो तरह की सेवाएं आती थीं। 2005 के आसपास बहुत सारी कंपनियां सीडीएमए बाजार में उतर गईं। फिर एक कंपनी से दूसरी कंपनी में कनेक्शन को बदलना संभव बना दिया गया तो बाजार में मारकाट मच गई। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने मोबाइल फोन के बाजार को प्रभावित किया, केवल बड़े खिलाड़ी बचे रह गए और सीडीएमए का दौर 2010 के बाद तकरीबन समाप्त ही हो गया जब एंड्रॉइड प्लेटफॉर्म ने एकछत्र राज जमा लिया।
इसी बीच दो खास तरह के मोबाइल फोन चर्चा में रहे। एक ब्लैकबेरी और दूसरा आइफोन। ब्लैकबेरी समय के साथ खत्म हो गया लेकिन आइफोन ने एंड्रॉइड से इतर अपने को बचाए रखा और धीरे-धीरे उच्चवर्ग से मध्यवर्ग तक पैठ बनाई। इसके समानांतर मझोले और निम्नवर्ग के उपभोक्ताओं को चीन के बने मोबाइल के बाजार ने पकड़ लिया। आज भी सबसे ज्यादा बिक्री चीन के बने सस्ते मोबाइल की ही है।
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