
वह भी एक समय था, जब भोजपुरी सिनेमा ने पूरे देश में अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाई थी। दुर्भाग्य से, समय के साथ उसकी यह पहचान छिन गई। अपने ही समाज की उपेक्षा से उसका न सिर्फ दर्शक वर्ग बदल गया, बल्कि गुणवत्ता में लगातार गिरावट आती गई। इस भाषा की मिठास को धीरे-धीरे अश्लीलता ने ढंक लिया और उसकी दुर्गति होने लगी। यह कहना गलत होगा कि भोजपुरी में अच्छी फिल्में और गाने नहीं बनते, लेकिन मुख्यधारा में अश्लीलता ने इतनी गहरी जड़ें जमा लीं कि गुणवत्तापूर्ण सिनेमा हाशिए पर चला गया। बंगाली, मराठी और पंजाबी भाषाओं ने अपने साहित्य और सिनेमा का लगातार विकास किया, लेकिन भोजपुरी अपने ही समाज की उपेक्षा की शिकार हो गई। बंगाल में हर दौर में बंकिमचंद्र और शरतचंद्र जैसे लेखक और कलाकार अपनी भाषा में सृजन करते रहे, मराठी और पंजाबी सिनेमा भी अपने साहित्य से प्रेरणा लेता रहा, लेकिन भोजपुरी भाषी समाज ने धीरे-धीरे अपनी मातृभाषा से दूरी बना ली। हिंदी का असर इतना बढ़ा कि भोजपुरी सिनेमा और साहित्य का स्वाभाविक विकास रुक गया। बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले कितने लेखकों ने भोजपुरी में लिखा ? सभी ने हिंदी में अपनी कलम चलाई।
आज भोजपुरी दर्शक वर्ग पूरी तरह बदल चुका है। पहले इसके साथ पढ़ा-लिखा समाज भी था, लेकिन जैसे-जैसे अच्छी भोजपुरी सामग्री कम होती गई, दर्शकों ने हिंदी को अपना लिया। आज भी उन्हें अच्छी भोजपुरी फिल्में और गाने मिलें तो जरूर देखेंगे-सुनेंगे। लेकिन जब मुख्यधारा में केवल फूहड़ता परोसी गई, तो उन्होंने मान लिया कि भोजपुरिया मनोरंजन का स्तर यही है।
Diese Geschichte stammt aus der March 31, 2025-Ausgabe von Outlook Hindi.
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