त्योहारों के कई ऐसे मौके आते हैं जब परिवार से दूर शहर में अकेले बिताना पड़ता है. कई सारी कामकाजी महिलाएं या पुरुष ऐसे मौकों पर अपनों से दूर ही रहते हैं. इस के अलावा अकेलापन उन्हें भी सालता है जिन का घर से दूर ट्रांसफर हो गया हो, पति या पत्नी का साथ छूट गया हो, तलाक हो गया हो, मातापिता संतानें छोड़ गए हों.
इन स्थितियों में उदासी छाती तो है पर त्योहारों के रंग में जीने के लिए एक जिंदा मन का होना जरूरी है. त्योहार तो हमें अवसर प्रदान करते हैं कि आप अपने जीवन को एक सही दिशा दें और अपने रंगहीन जीवन को रंग से सराबोर कर दें.
अकेलेपन की समस्या उन के लिए उग्र हो रही है जो घर से दूर किराए के मकानों में अकेले रह रहे हैं. त्योहारों पर जब बाकी लोग अपने परिवारों के साथ व्यस्त होते हैं, अकेले रह रहे व्यक्ति के लिए समय काटना भी मुश्किल लगता है.
अपनों का साथ छूट जाना दुख जरूर पहुंचाता है पर उन के न रहने से दुनिया खत्म तो नहीं हो जाती. अगर इसी को आप ने अंतिम बिंदु मान लिया तो निश्चित ही आप भूल कर रहे हैं. क्या उन का साथ रहता तो आप को इस तरह देखना वे पसंद करते? वे तो आप को हमेशा खुश देखना चाहते थे तो फिर दुख कैसा?
Diese Geschichte stammt aus der October Second 2022-Ausgabe von Sarita.
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