"जवानी दीवानी होती है ससुरी, पढ़लिख गया है, इसलिए मानेगा नहीं और मैं भी तो तुझे यहां रखने का नहीं चला जा बचवा अपनी मैम को ले कर. मैं भी एक कानी कौड़ी नहीं देने का तुझे घर का काम नहीं करेगा, नौकरी करेगा, हूं."
धर्मवीर बुत की तरह खड़ा रहा, बोला कुछ नहीं. सोचता रहा कि क्या घर छोड़ देना चाहिए? लेकिन घर छोड़ कर रहेगा कहां? अभी तो नौकरी लगी ही है. बापू को क्या हर्ज है यदि मैं यहीं रहूं? कुछ काम नहीं करूंगा तो कुछ लूंगा भी नहीं इन से क्या यह जरूरी है कि यहां रह कर मुझे कपड़े धोने ही पड़ें ? 11 वह हिम्मत कर के बोला, “मैं तुम से कुछ मांगूंगा नहीं बापू, जो किराया बाहर खर्च करूंगा, वही तुम्हें दे दिया करूंगा.
“तू तो मुझे हजारों दे दिया करेगा, लेकिन मुझे कुछ नहीं चाहिए. मुझे मेरा बेटा चाहिए, जो मेरा काम संभाल सके. मैं ने तुझे इसलिए नहीं पढ़ाया कि पढ़लिख कर कहीं बाबूगीरी करेगा. मैं ने इसलिए पढ़ाया था कि तू अपने ही धंधे को ज्यादा अक्ल से कर सकेगा. अब पढ़लिख कर तुझे अपने ही काम से नफरत होने लगी है तो निकल जा मेरे घर से."
धर्मवीर समझ गया कि अब उस की एक नहीं चलेगी. बापू पूरी तरह जिद पर अड़ गए हैं. उन की जिद से हरकोई परेशान है. अम्मा तो हर वक्त यही कहती रहती हैं कि इन में यह जिद की ऐब न होती तो आज घर का हुलिया ही कुछ और होता.
यहां यह हाल है कि एक बार कोई कपड़े धुलवाने आता है तो वह दोबारा नहीं आता. किसी को भी समय पर कपड़े नहीं मिलते, कभीकभी कपड़ों पर दाग भी लग जाते हैं. ऊपर से बापू का दिमाग हमेशा गरम ही रहता है. वह तो मां के इस्तिरी करने से जिंदगी बच गई, वरना कभी के सड़क पर होते.
आजकल लोग वाशिंग मशीन में धोए कपड़े इस्तिरी करने देने लगे हैं. उस धंधे में ज्यादा कमाई है पर छोरा सोचने लगा, अब इस धंधे में रखा ही क्या है और फिर बापू के पास भी कौन लाखों की पूंजी है. लेदे कर यह मकान और 5,000 रुपए के अम्मा के जेवर ही तो हैं. सब छोटे को दे देंगे तो मैं कौन सा डूब जाऊंगा. फिर अभी तो मनीषा की शादी भी करनी है. कितनी बड़ी हो गई है. बड़ीबड़ी आंखों से ग्राहकों को देखती है. दिनभर कालोनियों के नौकर कपड़े लिए आते रहते हैं और खड़ेखड़े इस्तिरी करवा कर ले जाते हैं.
Diese Geschichte stammt aus der November First 2022-Ausgabe von Sarita.
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