कोविड के कई मरीजों की जान पिछले 2 सालों में इसलिए गई क्योंकि उन्हें पहले से डीवीटी यानी डीप वेन थ्रोम्बोसिस की बीमारी थी. इस बीमारी में टांगों की नसों के सुकड़ जाने से खून के थक्के बन जाते हैं. जब कोविड में लंग्स पर अटैक होता है और ये थक्के वहां मौजूद होते हैं तो जान बचाना मुश्किल हो जाता है. डीवीटी को कभी हलके में नहीं लेना चाहिए.
मानव शरीर में नाड़ियों में खून के थक्के जम जाना काफी खतरनाक हो सकता है. पुराने रोगियों यानी जिन में क्रौनिक ढंग से रोग ने जड़ें जमा ली हों तो उन की टांगों की रक्त धमनियों में थक्के जमा होने लगते हैं और ये थक्के जानलेवा हो सकते हैं. इसलिए ऐसे मामले में उपचार व परहेज की तरफ खास ध्यान देने की बहुत जरूरत रहती है.
विशेषज्ञ डाक्टर के अनुसार, 'कई बार होता यह है कि टांगों की रक्त धमनियों से ये थक्के फेफड़ों या दिमाग में चले जाते हैं. इन के लक्षण सामने ही नहीं आ पाते. इस से रोग का सही निदान नहीं हो पाता. कुछ मामलों में तो रोगी की जान चली जाती है और मगर इस रोग का पता ही नहीं चल पाता. डाक्टरी भाषा में इसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस या डीवीटी कहते हैं.'
जानकारों के अनुसार, आज की कंप्यूटर केंद्रित जिंदगी में जो लोग लंबे समय तक बिना टांगें हिलाए कंप्यूटर पर काम करते हैं या फिर लंबी यात्राएं करते हैं और घंटों सीधे बैठे रहते हैं, उन को इस तरह के रोग हो जाने की आशंका ज्यादा रहती है.
एक ही जगह एकजैसी हालत में लंबे समय तक बैठे रहने से खून के संचार में रुकावट आ जाती है. यहीं से खून के थक्कों का बनना शुरू हो जाता है. जब खून में थक्के बनने लगते हैं और वे अपना असर मानव मस्तिष्क पर दिखाने लगते हैं तो रोग खतरनाक हो जाता है. एक ही हालत में लगातार बैठे रहने से थक्के पूरी जकड़ बना लेते हैं और रक्त संचालन में अवरोध पैदा कर देते हैं. फिर इस का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है, जिस के बाद यह दिल पर अपना असर दिखाना शुरू कर देते हैं. जो लोग अस्पतालों में लंबे समय से लेटे रहते हैं, उन के लिए यह एक गंभीर रोग बन जाता है. फिर इस से संक्रामक रोग, श्वास रोग, और यहां तक कि कैंसर हो जाने का डर भी रहता है.
Diese Geschichte stammt aus der November Second 2022-Ausgabe von Sarita.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der November Second 2022-Ausgabe von Sarita.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.