"अरे, तुम्हारा फोन कितनी देर से बिजी आ रहा था, किस से बात कर रही थी?"
"अपनी छोटी ननद से."
"क्यों, अभी 2 दिनों पहले भी तुम ने यही बताया था कि ननद से बात कर रही थी."
"हां, उस दिन बड़ी ननद से बात कर रही थी."
"पर इतनी बात क्यों करती हो ससुराल वालों से?"
"अरे, तुम्हें बताया तो था कि मेरे उन सब से अच्छे संबंध हैं."
"पर बड़ी से तो तुम ने कुछ मनमुटाव बताया था न?"
"नहीं, अब ऐसा कुछ नहीं. वे तो पुरानी बातें थीं, अब समय के साथ सब ठीक हो गया है."
"फिर भी, क्यों करनी है ससुराल वालों से इतनी बातें?"
"मुझे अच्छा लगता है. जब सब अच्छी तरह बात करते हैं तो क्यों दूरियां रखें."
"तुम्हें जो करना है करो, मेरा फर्ज तुम्हें समझाना था, तुम्हें समझ नहीं आ रहा तो तुम्हारी मरजी," चिढ़ कर नीमा ने फोन रख दिया.
रीता ने ठंडी सांस ली, परेशान हो गई है वह नीमा के हर समय के ज्ञान से. रीता का कहना है, "नीमा मेरी बहुत अच्छी दोस्त है पर इतनी डौमिनेटिंग हो जाती है कि बिना मांगे सलाह देदे कर बोर कर देती है. जरा भी लाइफ में स्पेस नहीं देती, जो बात सुनेगी, उस में टांग अड़ाएगी. अरे भई, मेरे पास भी है दिमाग. मेरी ही उम्र की तो है वह, मैं क्या कोई बच्ची हूं. दोस्ती में स्पेस भी चाहिए होता है, नीमा तो यह बात जानती ही नहीं."
दोस्ती बोझ तो नहीं
Diese Geschichte stammt aus der December Second 2022-Ausgabe von Sarita.
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