पंजाब में फिर से आग चिंगारी किस ने लगाई
Sarita|March Second 2023
अलगाव की आवाजें चाहे अमृतसर से आएं या वाराणसी से, देश के लिए बड़ा खतरा हैं. चूंकि इन की जड़ में धर्म होता है इसलिए इन से निबट पाना आसान नहीं होता. न तो खालिस्तान की मांग नई है और न ही हिंदू राष्ट्र की. लेकिन अब दोनों समुदाय एकदूसरे को उकसा रहे हैं, जो कतई अच्छे संकेत नहीं हैं.
भारत भूषण श्रीवास्तव
पंजाब में फिर से आग चिंगारी किस ने लगाई

"हिंदुस्तानी हुकूमत सैक्युलर हुकूमत है, मुझे बताओ कि कभी देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने कहा कि हिंदू राष्ट्र की बात कहने वालों पर कार्रवाई करेंगे? इस का मतलब फर्क है. हिंदुओं और सिखों के इंस्पिरेशन का फर्क है. सिख नहीं कर सकते लेकिन हिंदू अपनी बात कर सकते हैं.

"मुझे यह लगता है कि दबाने से कुछ नहीं दबता. इंदिरा गांधी ने यह कर के देख लिया, क्या नतीजा निकला ? अब ये भी कर के देख लें. हम तो हथेली पर सिर रख कर चल रहे हैं. हमें मौत का भय होता तो इन रास्तों पर चलते ही न, गृहमंत्री अपनी इच्छा पूरी कर के देख लें.

"500 वर्षों से हमारे पूर्वजों ने इस धरती पर खून बहाया है. इस धरती के दावेदार हम हैं. इस दावे से हमें कोई पीछे नहीं हटा सकता. न इंदिरा गांधी हटा सकी थीं और न ही नरेंद्र मोदी या अमित शाह हटा सकते हैं, दुनियाभर की फौजें आ जाएं, हम मरते मर जाएंगे लेकिन अपना दावा नहीं छोड़ेंगे." यह कहना है नएनए है चर्चा में आए अमृतपाल सिंह का.

अरसे बाद पंजाब से फिर अलगाव की बात पूरे दमखम और हुड़दंग के साथ उठी है. अमृतपाल सिंह का नाम रातोंरात दुनियाभर की जबान पर आ गया, नहीं तो लोगों ने यह मान लिया था कि खालिस्तान का मुद्दा इंदिरा गांधी के जमाने में जनून पर था जो ठंडा पड़ चुका है और इस के नाम पर अब कोई फसाद पंजाब में नहीं होगा. यह आखिरकार सभी को सुकून देने वाली बात थी पर अब न केवल अमृतपाल की बातों और वक्तव्यों से बल्कि हरकतों से भी साफ लग रहा है कि उस बोतल का ढक्कन 'किसी ने खोल दिया है जिस में अलग खालिस्तान नाम का जिन्न 80 के दशक के उत्तरार्ध से कैद था.

अमृतपाल ने पिछली 20 फरवरी को जो कहा उसे हलके में न लेने की कई वजहें हैं. खालिस्तान की मांग तो आजादी मिलने के पहले से ही उठने लगी थी लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई अलगाववादी अब हिंदू राष्ट्र के नारों का हवाला देते यह कह रहा है कि उस के पास भी कुछ भी कहने और करने की छूट और शह क्यों न हो जब कट्टर हिंदू भारत में ही हिंदू राष्ट्र की मांग कर सकते हैं. ऐसे में वह सिख खालिस्तान की मांग क्यों नहीं कर सकता. इस सवाल का कोई सटीक जवाब न तो गृहमंत्री अमित शाह दे पाएंगे और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्हें इंदिरा गांधी का हश्र याद है.

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