जातीय य जनगणना छत्ते को छेड़ो न
Sarita|June Second 2023
देश में अगर जातियों के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है तो जातियों के आधार पर जनगणना करने में दिक्कत क्या है, इस पर हायतौबा क्यों, आखिर किस बात का डर है और कौन डर रहा है?
शैलेंद्र सिंह
जातीय य जनगणना छत्ते को छेड़ो न

दिल्ली में नए संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया गया तो कांग्रेस सहित 19 दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन पौराणिक तौरतरीकों से करना चाहते थे, इस कारण दलित महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया. विपक्ष यह चाहता था कि नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराया जाए क्योंकि वे संविधान की संरक्षक हैं.

भारत में जातिवाद किस तरह से हावी है, यह उस का छोटा सा पर बेहद गंभीर और दुखदायी उदाहरण है. बात नई संसद के उद्घाटन तक ही सीमित नहीं है. अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए पर उस समय के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया था. इसी तरह से संसद भवन का शिलान्यास भी प्रधानमंत्री ने ही खुद हवन करा कर किया और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया.

भारतीय जनता पार्टी यह कह रही है कि उस की सरकार ने दलित वर्ग के रामनाथ कोविंद और आदिवासी वर्ग की द्रौपदी मुर्मू को एक के बाद एक राष्ट्रपति बना कर देश के सब से बड़े पद पर बैठाने का काम किया पर इस से साफ है कि जाति को ले कर किसी तरह की सोच बनी हुई है. देश की आजादी के 75 साल बाद भी अगर जाति का भूत सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोगों के दिलों पर सवार है तो कैसा संविधान, किस बात का अमृत काल और किस के लिए अमृत महोत्सव? 

नई संसद के उद्घाटन का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. जातिवाद के सहारे संविधान की भी चर्चा हुई, जिस में यह खोजा गया कि नई संसद के उद्घाटन का अधिकार किस को दिया गया है. विपक्ष का पहला तर्क था कि संसद की परिभाषा में कहीं भी प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है. इसलिए प्रधानमंत्री को उद्घाटन नहीं करना चाहिए था.

दूसरे, प्रधानमंत्री सिर्फ लोकसभा के नेता हैं और संसद दोनों सदनों को मिला कर बनती है. इसलिए, राष्ट्रपति को ही इस का उद्घाटन करना चाहिए. तीसरे, राज्यसभा कभी भंग नहीं होती. इसे काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है. इस के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति होते हैं. इसलिए राष्ट्रपति के बाद उद्घाटन का नैतिक दायित्व अगर किसी का होता है तो उपराष्ट्रपति का होना चाहिए.

Diese Geschichte stammt aus der June Second 2023-Ausgabe von Sarita.

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