दिल्ली जैसे किसी भारतीय महानगर में रहने वाले व्यक्ति को जिंदगी की सुबह समय पर औफिस पहुंचने की आपाधापी से शुरू होती है. फिर कई तरह की मीटिंग्स, काम पूरा करने की समय सीमा, भोजन न कर पाने की मजबूरी, ट्रैफिक का झमेला और फिर अगले दिन काम पर जाने के तनाव के साथ ही उन के दिन का अंत होता है. ऐसे में उन्हें अपने लिए व आराम करने के लिए वक्त नहीं मिलता.
दक्षतापूर्ण क्षेत्रों में काम करने वाले ऐसे भारतीय शहरी लगातार पूरी नींद लेने से वंचित रह जाते हैं. वे हमेशा काम के बोझ तले दबे होते हैं. ज्यादातर समय वे ढेर सारे प्रोजैक्ट और दायित्व पूरे करने की मारामारी में ही गुजार देते हैं. देर तक काम करना उन के लिए सामान्य बात है, जबकि भोजन से वंचित रह जाना उन की आदत बन जाती है.
कुल मिला कर उन की जीवनशैली पेंडुलम की तरह झूलती रहती है. कोविड के बाद वर्क फ्रॉम होम से कुछ राहत मिली है पर इस में नौकरी का खतरा बढ़ गया है क्योंकि जो दिखता नहीं वह लगता है ही नहीं वर्क फ्रॉम होम वाले ज्यादा टैंस में भी हो सकते हैं.
लगातार बेहद तनावनूर्ण लाइफस्टाइल के चलते कार्डियोवैस्क्यूलर स्थितियों और डायबिटीज जैसे लाइफस्टाइल डिसऑर्डर के मामले बढ़ते जा रहे हैं. स्ट्रैस और चिंता के कारण कुछ लोग माइग्रेन की चपेट में भी आ जाते हैं.
माइग्रेन के सिरदर्द की सहीसही वजह तो नहीं बताई जा सकती लेकिन समझा जाता है कि मस्तिष्क की असामान्य गतिविधियां नर्ल्स के सिग्नल्स को प्रभावित करती हैं और मस्तिष्क की ब्लड फ्लो इसे और तीव्र कर सकती है. यह डिसऑर्डर लगातार स्थिति बिगाड़ने वाला होता है जिस से प्रभावित व्यक्ति की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है.
अफसोस यह है कि इस के बावजूद बहुत सारे प्रभावित लोग चिकित्सकीय सलाह नहीं लेते. वे यह मान बैठते हैं कि इस का कोई उपाय नहीं हो सकता.
Diese Geschichte stammt aus der September First 2023-Ausgabe von Sarita.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der September First 2023-Ausgabe von Sarita.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.