आज के समय में परिवार छोटे होते जा रहे हैं जबकि पहले परिवार बड़े होते थे. एक परिवार में तीनचार पीढ़ियां भी एकसाथ रहती थीं. भाईबहन अब के मुकाबले अधिक होते थे. यानी, हमें एक बड़े परिवार में रहने की आदत थी. सब मिल कर कारोबार करते थे. नई पीढ़ियां उसी कारोबार में जुड़ती जाती थीं पर जरा सोचिए, क्या उन बड़े परिवारों में सबकुछ सही था? क्या उन परिवारों में रहने वालों में आपसी प्यार था?
भारत में संयुक्त परिवारों के भीतर कई संपत्ति विवाद देखे गए हैं. राजनेताओं, रईस खानदानों, सैलिब्रिटीज और बड़ेबड़े उद्योगपतियों के यहां भी ऐसे विवाद आएदिन सामने आते रहते हैं. उन की जिंदगी के भी पारिवारिक झगड़ों और विवादों ने सुर्खियां बटोरी हैं. वहीं, कई ऐसे भी नामीगिरामी परिवार हैं जिन की एकता और प्रेम ने उन के बिजनैस को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया.
उदाहरण के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी रिश्तों को बहुत तवज्जुह देते थे. हालांकि अपने निधन से पहले वे एक बड़ी गलती कर गए. अपने जीतेजी उन्होंने बेटों के नाम वसीयत नहीं की. इसी के कारण मुकेश और अनिल के बीच रिश्ते दरक गए. धीरूभाई ने सोचा भी नहीं होगा कि एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले मुकेश और अनिल एकदूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन जाएंगे.
Diese Geschichte stammt aus der October Second 2023-Ausgabe von Sarita.
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हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.