उत्तर प्रदेश में सरकार मंदिरों को सरकारी कब्जों में लेने की कोशिश कर रही है क्योंकि ये आमदनी और विवादों की बड़ी जड़ हैं. एक सुझाव है कि मंदिर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के अधीन हों. निजी पुरोहितों द्वारा किरानों की दुकान की तरह चलाए जा रहे मंदिर भाजपा के लिए आय का सब से बड़ा स्रोत बन सकते हैं. इसी तरह अवैध धार्मिक स्थलों के मामले मध्य प्रदेश में भी हैं. धार्मिक स्थल वोट की राजनीति की वजह और पंडेपुजारियों की मुफ्त की कमाई के लालच में बनते गए.
भारी संख्या में धार्मिक स्थलों से किसे लाभ हो रहा है? इन की आम व्यक्ति के जीवन में क्या कोई उपयोगिता है या फिर केवल लूट, अपराध और अंधविश्वास के प्रचारप्रसार के लिए हैं ये? किसी भी शहर में जितने स्कूल, अस्पताल और बगीचे नहीं हैं, उस से कई गुना धार्मिक स्थल हैं, ऐसा क्यों?
सहज समझा जा सकता है कि मध्य प्रदेश के शहर मंदसौर की आबादी को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि यहां के प्रशासन ने अवैध तरीके से बनने वाले मंदिरों को रोकने की दिशा में कभी कोई कदम उठाया होगा. इसलिए कि यहां प्रदेश में सब से अधिक मंदिर हैं. सरकारी रिकौर्ड में 6,844 मंदिर हैं. मध्य प्रदेश के ही मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर में नए निर्माणों के बाद दान और चढ़ावा 80-85 लाख रुपए हुआ करता था जो अब तकरीबन 3 करोड़ रुपए हो गया है. लोग औनलाइन चढ़ावा भी दे रहे हैं.
शिवपुरी में इस समय 4,500 से ज्यादा मंदिर हैं. जाहिर है कि जिला प्रशासन ने और नगरीय प्रशासन ने मंदिर निर्माण पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई जिस से जिसे जहां मन आया वहां चंदा एकत्र कर मंदिर बना दिया.
मंदिर बनाने की होड़
Diese Geschichte stammt aus der December Second 2023-Ausgabe von Sarita.
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