2024 के आम चुनाव जिस दुर्लभ बात के लिए याद किए जाएंगे उन में से एक यह भी होगा कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक मंच से संविधान की दुहाइयां देने और आरक्षण खत्म न करने का भरोसा देने को मजबूर कर दिया. 4 जून के नतीजे जो आएंगे सो आएंगे, ऊंट किसी भी करवट बैठे लेकिन भाजपा का कोर वोटर यानी सवर्ण तबका सकते और सदमे में है जो यह आस लगाए बैठा था कि भाजपा 400 पार पहुंची तो यह झंझट भी खत्म कर देगी; ठीक वैसे ही जैसे उस ने अयोध्या में राम मंदिर बनाया है और जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 बेअसर किया है.
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों ही एकदूसरे पर आरक्षण खत्म कर देने का आरोप लगाते अपनी तरफ से यह आश्वासन दे रहे हैं कि संविधान और आरक्षण सलामत रहेंगे लेकिन उसी सूरत में जब हम सत्ता में आएंगे.
इस रामायण का उत्तरकांड बहुत संक्षिप्त है कि दलित तबके, जिसे धर्मग्रंथों में बारबार शूद्र कहते प्रताड़ित करने के निर्देश और आदेश दिए गए हैं, की ताकत का एहसास दोनों दलों और उन के दिग्गजों को है.
चुनावी मैदान में इस बार कोई दलित हिमायती दल दमदारी से नहीं है. उत्तर प्रदेश में बसपा नाममात्र को है जिसे सियासी पंडित लड़ाई में गिन ही नहीं रहे. इस बार तो वह किसी का खेल बिगाड़ने की स्थिति में भी नही दिख रही.
क्या अब कोई जीते कोई हारे, दलित, आदिवासी, पिछड़ा पहले से ही जीत गया है क्योंकि संविधान सुरक्षित है. शायद नहीं क्योंकि देश के सनातनी धर्मगुरुओं ने इस पचड़े से दूर हिंदू राष्ट्र के संविधान का मसौदा ही तैयार कर लिया है.
मुमकिन है बात 'सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा' जैसी लगे लेकिन साधुसंतों की यह उम्मीद अभी जिंदा है कि भाजपा 4 जून को सरकार बनाएगी और 1950 का संविधान 370 की तरह निष्प्रभावी कर नया संविधान लागू करेगी जो मूलतया मनुस्मृति पर आधारित होगा.
आधुनिक काल के हिसाब से उस में से दलितों को ठोंकने व कूटने के निर्देश तो नहीं दिए गए हैं। क्योंकि उन की नजर में अब शायद इसे दोहराने की जरूरत खत्म हो गई है. यह बात हिंदू संविधान लागू करने वाले खुद समझ जाएंगे.
ऐसा हो सकता है हिंदू राष्ट्र का संविधान
Diese Geschichte stammt aus der May Second 2024-Ausgabe von Sarita.
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