हे अपनों से असंतुष्टों को होटल होटल छिपालिटा संतुष्टि का अमरत्व पिलाने वालो, हे अपनों से असंतुष्टों को एक से एक रिजोर्टों में घुमातेघुमाते सत्ता वालों को सत्ता में होते हुए भी चक्करघिन्नी की तरह घुमाने वालो, ईएनडीए वालो, हे इंडिया ब्लौक वालो, आप जी सचमुच महान हो. असंतुष्टों की असंतुष्टि का पलक झपकते इस्तेमाल करने में आप महाप्राण हो. जहां भी हम असंतुष्ट आप को जरा सा भी रोते बिलखते दिखते हैं, वहीं आप हमारा उद्धार करने के लिए नंगे पांव दौड़े आते हो और हमें चार्टर यान में उठा छूमंतर हो जाते हो. आप की कृपामयी नजरों से किसी भी पार्टी का कोई भी असंतुष्ट आज तक बच नहीं पाया. कहीं भी, जो भी जरा सा भी आप को असंतुष्ट दिखा, उसको आप ने चूहे की तरह बाज हो कर उठाया. आप हर पार्टी के असंतुष्टों के मोक्षद्वार हो. आप हम असंतुष्टों के गले का कागजी फूलों के हार हो. आप जो हम असंतुष्टों को संतुष्ट करने का पुण्य कार्य कर रहे हो, वह स्वर्गिक है, हम स्वर्गीय हैं.
मुझे भी आप को यह सूचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि आप ने उन के तो सारे असंतुष्टों को संतुष्ट करने का सौभाग्य प्राप्त कर पुण्य प्राप्त कर लिया पर एक असंतुष्ट अभी भी आप की पैनी नजरों में नहीं आया है. उस पर हर कोण से असंतुष्टि की काली छाया है और वह घरजला असंतुष्ट और कोई नहीं, मैं हूं सर जी.
प्लीज, इस असंतुष्ट पर भी अपनी कृपादृष्टि डाल इस का जीवन भी धन्य कीजिए, प्रभु मैं आप के पास बिकने, आप से लिपटने को अपना बोरियाबिस्तर बांध तैयार बैठा हूं यह जानते हुए भी आदमी चाहे कितने का भी बिके, बिकने के बाद उस की इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रहती.
Diese Geschichte stammt aus der June First 2024-Ausgabe von Sarita.
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