दिल्ली से 171 और लखनऊ से 310 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदरा राव तहसील में भोले बाबा के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 122 लोगों की हुई मौतों ने नए सवालों को जन्म दिया है. इस घटना से भीड़ प्रबंधन और स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल भी खुल गई है. 75 सालों की मुफ्त सरकारी शिक्षा के बावजूद अभी भी खासी जनता गरीब, असहाय व अनपढ़ है और वह धर्मगुरुओं के अधीन मरनेखपने को मजबूर है. धर्मगुरुओं के लिए जनता भेड़बकरी जैसी होती है और आमजन के मरने से धर्मगुरुओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
हिंदूहिंदू के शोर से धर्म की चाशनी में डूबी जनता को भुनाने के लिए, धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए धर्म का धंधा बड़ी तेजी से फलफूल रहा है. प्रचारप्रसार की नई टैक्नोलोजी के साधनों ने इस को तेजी से आगे फैलाने का काम किया है. ऐसे ही धर्मगुरुओं में कथावाचक सूरज पाल जाटव उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा का नाम भी शामिल है. 20 साल से इस बाबा का गोरखधंधा चल रहा था और किसी की नजर नहीं पड़ी.
बाबा खुद को परमात्मा कहता था और अपनी बातों में जनता को फंसाता था. हाथरस में हुई इस दुर्घटना ने बाबा के प्रपंच पर से परदा हटा दिया. बाबा अपने प्रवचन में कहता था जो न सिलसिलेवार है न तार्किक न तथ्यों वाला. 'आप ने अभी परमात्मा नारायण साकार हरी की लीला देखी होगी. देखा होगा, लीला चल रही थी. जैसेजैसे लीला आगे बढ़ रही थी, लोगों की सांसें बढ़ रही थीं. कुछ कपड़े अस्तव्यस्त हो गए तो लोगों को लगा कि अब क्या होगा ? कुछ ने देखा होगा, कुछ ने न देखा होगा. जिस ने देखा होगा वह समझ गया होगा कि होगा वही जो परमात्मा साकार हरि चाहते हैं. साकार हरि को क्षण मात्र में नई सृष्टि की संरचना करने में समय नहीं लगता है. आप ने मूवी देखी होगी, सिनेमा. उस में हीरोहीरोइन मस्त हो जाते हैं. उसी समय विलेन आ जाता है. जिस तरह से हीरो विलेन को मार देता है उसी तरह से साकार हरि आप के दुखों को मार देते हैं.'
बाबा का ब्रह्मज्ञान
Diese Geschichte stammt aus der July Second 2024-Ausgabe von Sarita.
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यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.