पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि कैसे कांग्रेस पार्टी अंतर्कलह, टूटफूट और एकरूपता की कमी की वजह से मध्य प्रदेश में धराशायी हो गई. अब आगे...
कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष के साथसाथ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद के लिए युवा चेहरे को सौंपते हुए उमंग सिंघार को नियुक्त किया. यह बात भी पार्टी के वरिष्ठ विधायकों को नागवार गुजरी. उस वक्त तो जातिगत समीकरण बैठाने की बात कही गई मगर कहीं न कहीं उमंग से ज्यादा वरिष्ठ कांग्रेस विधायकों में नाराजगी दिखाई दी.
लोकसभा चुनाव तक तो सब शांत रहे, मगर अब आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 4 सीटों में से एक सीट पर जीत हासिल नहीं हुई तो ये नेता भी खुल कर पटवारी और उमंग के खिलाफ बयानबाजी कर इस्तीफा देने तक की मांग कर रहे हैं. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह तो खुल कर यह बोल चुके हैं कि इन नेताओं को हार की जवाबदेही लेनी चाहिए और इस्तीफा देना चाहिए.
उमंग सिंघार को आदिवासी वर्ग का नेता बता कर नेता प्रतिपक्ष बनाने का असर भी नजर नहीं आया. वे मालवा अंचल की सिर्फ एक सीट धार पर पूरी ताकत लगाते रहे, बाकी सीटों से उन्होंने दूरी बनाए रखी. रतलाम - झाबुआ, मंडला, खरगोन आदिवासी वर्ग की इन 3 आरक्षित सीटों पर उमंग का न तो प्रभाव दिखा और न ही सक्रियता. अब कांग्रेस में फिर नए सिरे से आदिवासी वर्ग में प्रभाव रखने वाले नेता की तलाश शुरू हो गई है.
दो चरणों के मतदान के बाद भाजपा को याद आए शिवराज
मध्य प्रदेश में भाजपा की सभी 29 सीटों पर कमल खिलाने में देखा जाए तो प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अहम भूमिका रही है. मगर विधानसभा चुनाव 2023 पार्टी को जिताने के बाद जिस तरह से दिल्ली के नेताओं ने उन्हें हाशिए पर लाने का प्रयास किया और मुख्यमंत्री की कुरसी उन से छीनी, इसके बाद मामा के नाम से प्रसिद्ध शिवराज सिंह भी टूटते नजर आए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. अपनी कार्यशैली और लोगों के बीच बनाई अपनी पहचान के बूते पर दिल्ली के नेताओं को इस बात के लिए विवश किया कि प्रदेश में अगर कोई चेहरा है तो वह सिर्फ शिवराज है.
Diese Geschichte stammt aus der July Second 2024-Ausgabe von Sarita.
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