क्या पुरुषों को भी मेनोपौज होता है
Sarita|July Second 2024
45 साल की उम्र के करीब कई पुरुषों में चिड़चिड़ापन, सुस्ती और जीवन में असंतोष जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. ये वही पुरुष हैं जो पहले खुशमिजाज और जोश से भरे होते थे. इस बदलाव के पीछे का कारण है 'एंड्रोपौज', जिसे पुरुषों का मेनोपौज कहा जाता है.
डा. विकास जैन
क्या पुरुषों को भी मेनोपौज होता है

जकल परिवारों में ऐसे पुरुष आमतौर से देखने को मिलते हैं जिन की उम्र 45 वर्ष के आसपास है और जो काम व घर, दोनों जगह चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं और सुस्त जीवन व्यतीत करते हुए जीवन की नकारात्मकताओं के बारे में बात करते रहते हैं. ये वही लोग हैं जो कुछ वर्षों पहले तक बहुत खुशमिजाज हुआ करते थे और हंसीमजाक करते रहते थे. जो लोग रात में जोश से भरे होते थे, आज उन का जोश ठंडा पड़ चुका है. उन के साथ ऐसा क्या हो गया है? इस का कारण जानने की फिक्र कोई नहीं करता बल्कि सभी लोग उन से दूरी बना लेते हैं और अंत में स्थिति यहां तक बिगड़ जाती है कि उन्हें मनोवैज्ञानिक के पास ले जाना पड़ता है.

ये लोग काम में अच्छा प्रदर्शन करने के दबाव (काम संबंधी तनाव) में होते हैं, उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा और उन के कैरियर की चिंता होती है, जिस के लिए उन्हें ज्यादा पैसे कमाने और ज्यादा बचत करने की जरूरत होती है. उन्हें अपने होते मातापिता और उन की वृद्ध बीमारियों आदि की भी चिंता होती है. यह सभी घरों की आम कहानी है और ये पुरुष इस उम्र में जिस पीड़ा से ग्रसित हैं, उसे 'पुरुषों का मेनोपौज' या 'एंड्रोपौज' कहा जाता है.

30 साल की उम्र में पुरुषों में हार्मोन (टैस्टोस्टेरोन) धीरेधीरे कम होना शुरू हो जाते हैं. आमतौर से टैस्टोस्टेरोन हर साल एक प्रतिशत कम होते हैं. जब तक वे 45 वर्ष की आयु तक पहुंचते हैं तो टेस्टोस्टेरोन में कमी के लक्षण कम ऊर्जा, मूडस्विंग और कामेच्छा में कमी के रूप में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने लगते हैं. इसलिए इस समय पुरुषों को मनोवैज्ञानिक की नहीं, बल्कि उन्हें समझने वाले परिवार व उन के एंड्रोपौज को नियंत्रित करने के लिए विशेषज्ञ सुझाव की जरूरत होती है.

Diese Geschichte stammt aus der July Second 2024-Ausgabe von Sarita.

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