■ भाजपा के दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय में बिप्लव देब व मोहन लाल बड़ौली ने पार्टी का पटका पहनाया
■ तीनों नेता बोले भाजपा की जन कल्याणकारी नीतियों से प्रभावित होकर सदस्यता ग्रहण की, बोलेः खिलाएंगे कमल
■ हरियाणा विधानसभा चुनाव मे अब "फ्रंट फुट" पर खेल रही भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से विधानसभा चुनाव को "फ्रंट फुट" पर खेल रही है। हरियाणा में हर रोज भाजपा का कुनबा बढ़ रहा है। पार्टी की नीतियों से सहमति जताते हुए दूसरे दलों के बड़े नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। सोमवार को जेजेपी से विधायक और पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली, पूर्व मंत्री सतपाल सांगवान के पुत्र और पूर्व जेलर सुनील सांगवान और झज्जर से जेजेपी नेता संजय कबलाना ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। भाजपा के दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय में हरियाणा भाजपा चुनाव सह प्रभारी बिप्लव देब व प्रदेशाध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने उन्हें पार्टी का पटका पहनाया और पूरा मान सम्मान का आश्वासन भी दिया। बता दें कि भाजपा ने एक दिन पहले ही जेजेपी को बड़ा झटका दिया था। रविवार को जींद रैली के दौरान जेजेपी छोड़कर आए नारनौंद के विधायक रामकुमार गौतम, हरियाणा सरकार में पूर्व मंत्री अनूप धानक, बरवाला से विधायक जोगीराम सिहाग भाजपा में शामिल हुए। उनके साथ हरियाणा जन चेतना पार्टी के प्रमुख विनोद शर्मा की पत्नी और अंबाला की मेयर शक्ति रानी शर्मा ने भी भाजपा का दामन थामा था। अब राजनीतिक स्थिति स्पष्ट होती जा रही है। कि हरियाणा विधानसभा में मुकाबला एक तरफा नहीं है।
Diese Geschichte stammt aus der September 03, 2024-Ausgabe von Aaj Samaaj.
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'हिन्दी है हम वतन', फिर हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं ?
देश में हिंदी बोलने तथा पढ़ने वालों की संख्या लगभग 65 से 70 करोड़ है, यह भाषा की बहुलता कथा विविधता ही है जिसके कारण भाषाई विवाद की स्थिति उभरी है, और सर्वाधिक नुकसान हिंदी को उठाना पड़ा है। वर्ष 2008 में विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयॉर्क (अमेरिका) में भारतीय साहित्यकारों, कवियों को चिंतकों, प्रोफेसर, चिंतकों, पत्रकारों ने बड़े जोर शोर से संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा बनाने हेतु र मान्यता देने के लिए पुरजोर कोशिश की थी।
दिल्ली में स्कूल शिक्षा की कुव्यवस्था और बर्बादी के लिए केजरीवाल सरकार जिम्मेदार
केद्र सरकार से पर्याप्त धनराशि प्राप्त करने के बावजूद, आप प्रशासन ने शिक्षा पर आवांटित धन का आधा से भी कम खर्च किया है। वह लापरवाही दिल्ली के बच्चों और उनके भविष्य के साथ विश्वासघात है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों की स्थिति इस उपेक्षा के बारे में बहुत कुछ कहती है। टूटा हुआ बुनियादी ढाँचा; भीड़भाड़वाली कक्षाएँ और शिक्षकों की भयावह कमी एक भयावह तस्वीर पेश करती है। जबकि आप सरकार कुछ विश्व स्तरीय स्कूल बनाने का दावा करती है