विभाजित शिवसेना और दोफाड़ हुई एनसीपी के लिए विदर्भ बना मुश्किल रणक्षेत्र
मुंबई। विदर्भ में भाजपा के लिए जहां प्रतिष्ठा का चुनाव है, तो वहीं कांग्रेस के सामने खोई साख वापस पाने की चुनौती है। पिछले दो चुनावों में विदर्भ की जनता ने भाजपा और अविभाजित शिवसेना पर भरोसा किया था। पूर्वी विदर्भ में भाजपा तो पश्चिम में शिवसेना ने अपनी मजबूत पकड़ बनाई है।
1960 से लेकर 2009 तक पूरा विदर्भ कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा था। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में जब कांग्रेस की करारी हार हुई थी, उस वक्त भी विदर्भ की जनता ने सभी सीटें इंदिरा गांधी को भेंट की थीं। अब, विभाजित शिवसेना और दोफाड़ हुई एनसीपी के लिए विदर्भ का रण आसान नहीं रह गया है। विदर्भ यानी पूर्वी महाराष्ट्र के 11 जिलों का क्षेत्र। इस क्षेत्र में लोकसभा की 10 सीटें हैं। इनमें से पांच नागपुर, रामटेक, चंद्रपुर, गोंदिया-भंडारा और गढ़चिरौली सीटों पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होगा। दूसरे चरण में 26 अप्रैल को अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल - वाशिम और बुलढाणा सीट पर मतदान होगा। रामटेक एससी, तो गढ़चिरौली-चिमूर (एसटी) आरक्षित सीट है। सभी सीटों पर शिवसेना उद्धव बालासाहब ठाकरे, एनसीपी शरद पवार व कांग्रेस के महा विकास आघाड़ी (एमवीए) गठबंधन और सत्तारूढ़ भाजपाशिवसेना-एनसीपी (अजित गुट) की महायुति के बीच कड़ा मुकाबला है। 10 लोकसभा सीटों और 62 विधानसभा क्षेत्रों वाला विदर्भ क्षेत्र 2024 के चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी एमवीए गठबंधन के राजनीतिक भविष्य का इतिहास लिखेगा।
Diese Geschichte stammt aus der March 28, 2024-Ausgabe von Amar Ujala.
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