उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद नगर यूं तो पीतल नगरी कहलाता है मगर पीतल की सुनहरी चमक यहां से गायब होती जा रही है। पीतल के बर्तनों और शिल्प उत्पादों के लिए मशहूर इस शहर में अरसा पहले ही एल्युमीनियम और स्टेलनेस स्टील का दबदबा होने लगा था। रही सही कसर लोहे ने पूरी कर दी है, जो पीतल के साथ एल्युमीनियम और स्टील का भी बाजार खाने लगा है।
मुरादाबाद में बनने वाले हैंडीक्राफ्ट उपहारों, यूटिलिटी उपकरणों, बाथरूम और गार्डन में काम आने वाले उपकरणों तथा घरेलू साज-सज्जा के सामान की यूरोप, अमेरिका तथा दूसरे हिस्सों में खूब मांग रहती है। शहर में 4,500 से 5,000 इकाइयां इन्हें बनाती हैं। इनमें 2,500 से अधिक इकाइयां धातुओं से बने उत्पाद बनाकर निर्यात करती हैं। मुरादाबाद के पीतल उद्योग से प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर 3 से 4 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। मुरादाबाद पीतल कारोबार में 80 से 85 फीसदी हिस्सेदारी निर्यात की है।
सस्ते लोहे से कौन ले लोहा?
मगर कारोबारी बताते हैं कि मुरादाबाद से बर्तन और हैंडीक्राफ्ट उत्पादों के कुल कारोबार में पीतल की हिस्सेदारी 5 फीसदी भी नहीं बची है। इसके उलट लोहे के उत्पादों की हिस्सेदारी 20 से 25 फीसदी हो गई है। द हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सचिव सतपाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि निर्यात बाजार में कीमत से बहुत असर पड़ता है और पीतल से बने हैंडीक्राफ्ट कीमत के मामले में होड़ नहीं कर सकते।
Diese Geschichte stammt aus der September 16, 2024-Ausgabe von Business Standard - Hindi.
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