कालीनों के लिए इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल दिनोंदिन महंगा हो रहा है और हुनरमंद बुनकरों की भी खासी किल्लत है। महंगाई और बुनकरों की बढ़ती मजदूरी के कारण भदोही के हाथ से बुने कालीन महंगे होने लगे हैं। इसलिए देसी बाजारों में मशीन से तैयार सस्ते कालीनों की बिक्री बढ़ने लगी है।
विदेश से घट रही मांग
दिलचस्प है कि कारोबारियों को देश के भीतर सस्ते और मशीनी कालीन छाने की खास परवाह नहीं है क्योंकि भदोही के कालीन का असली बाजार हमेशा से विदेश में ही रहा है। मगर उन्हें असली चोट विदेशी बाजारों में लगने का खटका है। वे कहते हैं कि यूरोप में आज भी तुर्की और चीन में बने सिंथेटिक धागे कालीनों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है। उनके बजाय भदोही के बने कालीनों की मांग ज्यादा रहती है। किंतु रूस-यूक्रेन युद्ध चलते रहने और यूरोप में कई देशों की आर्थिक हालत डांवाडोल होने की वजह से ऑर्डर में पहले के मुकाबले काफी कमी आई है।
ऑर्डर घटने का एक बड़ा कारण हाथ से बने कालीनों के दाम बढ़ना भी है। हाथ के कालीन की बुनाई करने वाले हुनरमंद बुनकरों की कमी हो जाने के कारण माल बाहर से तैयार कराना पड़ रहा है। भदोही से बाहर बुनकरी महंगी हो जाती है और माल की ढुलाई का खर्च भी उसमें जुड़ जाता है। कालीन में कच्चे माल के तौर पर ऊन और दूसरे धागों का इस्तेमाल होता है, जिनके दाम पहले के मुकाबले 7 से 10 फीसदी बढ़ गए हैं।
गायब हुए हुनरमंद कारीगर
Diese Geschichte stammt aus der September 30, 2024-Ausgabe von Business Standard - Hindi.
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