अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हमें क्या बताती है कि नेता ऐसा क्या करते हैं कि वे जीत जाते हैं, हारते हैं या फ़ीकी जीत दर्ज कर पाते हैं। ट्रंप इस बार जीते हैं, राहुल अक्सर हारते रहते हैं और मोदी ने इस बार जून में फ़ीकी जीत हासिल की। तीनों के बारे में सोचिए। ट्रंप की शानदार जीत से निकला पहला सबक है सफल अभियान के लिए तीन स्तंभों का फ़ॉर्मूला। उसे राष्ट्रवाद, विजयवाद और अविश्वास का नाम देते हैं। यह कैसे काम करता है, यह जानने के लिए मागा यानी 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' (अमेरिका को दोबारा महान बनाएं) की अवधारणा पर विचार कीजिए। यानी अमेरिका अभी जितना महान है, उससे अधिक महान बनाने की कोशिश ही राष्ट्रवाद है यानी उसे दोबारा महान बनाया जाएगा। उसे हालिया अतीत की उस स्थिति में लाने, जब वह शीर्ष पर था, की बात विजयवाद है। जंग शुरू होने से पहले ही जीत का ऐलान कर दीजिए।
अगर आप दलील देंगे कि अमेरिका पहले से महान था और उसकी अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है और उसका जीडीपी जो 2008 में यूरो क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद का 50 फ़ीसदी था अब उसके दोगुना हो गया है, उसके शेयरों में तेज़ी आ रही है, प्रौद्योगिकी और नवाचार में वह दुनिया का नेतृत्व करता है तो मैं आपको बताता हूँ अविश्वास क्या है। चुनावी राष्ट्रवाद में मेरा देश तब तक ठीक से महान नहीं होता, जब तक मैं उसकी बागडोर नहीं संभालता। मेरे संभालते ही वह बहुत बेहतर हो जाएगा।
भारत की बात करें तो हम देख सकते हैं कि राहुल गांधी 2014 और 2019 में बुरी तरह क्यों हारे और मोदी ने शानदार प्रदर्शन क्यों किया। उसके बाद अचानक क्या हुआ, जो 2024 में मोदी अपनी ही नहीं बाज़ार और चुनाव विश्लेषकों की अपेक्षाओं से भी पिछड़ गए? 240 सीटें उनके लिए निराशाजनक थीं। दूसरे को चित करने का आदि अगर अंकों के आधार पर जीते तो जीत को ख़राब ही माना जाएगा। यह क्यों हुआ? हमारे द्वारा तय तीन बिंदुओं - राष्ट्रवाद, विजयवाद और अविश्वास की कसौटी पर कांग्रेस और राहुल गांधी की कसना आसान होगा।
Diese Geschichte stammt aus der November 11, 2024-Ausgabe von Business Standard - Hindi.
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