भारतीय संघ को लेकर गंभीर अध्ययन करने वाले विद्वान अक्सर उसे "सहकारी संघवाद" वाला देश कहते हैं। इस बारे में गत 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने 26 अक्टूबर को मुंबई में दिए एक भाषण में दिलचस्प बातें कही थीं। उनके आधार पर हमें यह देखना चाहिए कि हम भारतीय संघवाद को किस दृष्टि से देखते हैं।
यह कहते हुए कि 'सहकारी संघवाद' भारत के लोकतांत्रिक शासन के मूल में नहीं है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमारे यहां राज्य सरकारों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे केंद्र सरकार की नीतियों का पूरी तरह अनुकरण करें। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के 1977 के निर्णय का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि भारत में संघवाद का मॉडल "बुनियादी तौर पर सहकारी है जहां केंद्र और राज्य अपने मतभेदों को विचार-विमर्श के जरिये दूर करते हैं और साझा विकास लक्ष्यों को हासिल करते हैं।" उन्होंने कहा कि संघीय सिद्धांतों को चर्चा और संवाद के जरिये आगे बढ़ाना चाहिए और सहयोग तो इन्हें बरकरार रखने का एक जरिया भर होना चाहिए। इसके अलावा चर्चाएं भी समान रूप से महत्त्व रखती हैं जो एक सिरे पर सहयोग तो दूसरे सिरे पर प्रतियोगिता तक विस्तारित हो सकती हैं। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दोनों आवश्यक हैं। निश्चित तौर पर प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धा भी शामिल हो सकती है।
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