अमेरिका का विकल्प साथ रखने की नीति
Business Standard - Hindi|November 22, 2024
आवश्यकता इस बात की है कि दुनिया एक मजबूत नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की ओर वापसी करे। इस दिशा में एक-एक कदम करके आगे बढ़ना होगा।
अजय मोहंती
अमेरिका का विकल्प साथ रखने की नीति

वैश्विक विनिर्माण में चीन का दबदबा है। फिलहाल वह वैश्विक उत्पादन में 32 फीसदी का हिस्सेदार है। अमेरिका, जापान, जर्मनी, भारत और दक्षिण कोरिया क्रमश: 16, 7, 5, 3 और 3 फीसदी के हिस्सेदार हैं। चीन दुनिया का सबसे बड़ा कारोबारी है और अब तक वह दुनिया में विनिर्मित वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक भी है। इसमें चीनी और विदेशी दोनों कंपनियां शामिल हैं। दुनिया कारोबार के इस प्रकार चीन में केंद्रित होते जाने को ध्यान में रखते हुए उसमें विविधता लाना चाहती है और इसके लिए चीन के अलावा किसी देश पर ध्यान देने की नीति पर बात शुरू हुई। चीन विनिर्माण का अहम स्रोत है लेकिन भारत समेत अन्य देश उस दूसरे देश का स्थान लेना चाहते हैं जो चीन का विकल्प बनेगा। अब जबकि दुनिया एक देश पर अपनी भूराजनीतिक निर्भरता को कम करने पर विचार कर रही है हमें भी एक देश पर अपनी भूराजनीतिक निर्भरता कम करनी चाहिए।

आखिर वैश्विक नेतृत्व कैसे तैयार होता है? अमेरिका दूसरे विश्व युद्ध के बाद एक दबदबे वाली अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा और वैश्विक विनिर्माण उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी 60 फीसदी थी। उस समय वह दुनिया की सबसे मजबूत सैन्य शक्ति भी था। युद्ध के बाद की अवधि के लिए कई बहुराष्ट्रीय संस्थान बनाए गए: संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व व्यापार संगठन, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय आदि। इन संगठनों का प्रभाव और उनकी विश्वसनीयता में अंतर रहा है लेकिन उन्हें अमेरिका के समर्थन से मजबूती मिली। यह इच्छा शक्ति भी कि अगर कोई देश नियम पालन न करे तो उसे निशाना बनाया जा सके।

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