जब से राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने इस सत्य को समझा है कि "जनांकिकी ही नियति है", तब से वे जनसंख्या को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। यूरोप और अमेरिका में उन्होंने अवैध प्रवासियों का आगमन रोककर ऐसा करने का प्रयास किया क्योंकि प्रवासियों के कारण उनकी जनांकिकी बिगड़ रही है। भारत में हम केवल कुल प्रजनन दर (टीएफआर) बढ़ाकर ऐसा करने पर विचार कर रहे हैं। प्रति महिला 2.1 की कुल प्रजनन दर को आबादी के स्तर को स्थिर रखने के लिए उचित माना जाता है।
अक्टूबर में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में घटती टीएफआर की बात कहते हुए संकेत दिया कि वे परिवारों को और बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की ताजा रिपोर्ट तथा ऐसी ही अन्य रिपोर्ट के मुताबिक जहां तमिलनाडु की टीएफआर 1.8 और आंध्र प्रदेश की 1.7 है वहीं बिहार 3 की टीएफआर के साथ सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश और झारखंड की टीएफआर क्रमशः 2.4 और 2.3 है। इससे संकेत मिलता है कि बड़ी आबादी वाले हिंदी प्रदेशों में भी दर घट रही है। कुछ दिन पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने यह मुद्दा उठाया और कहा कि महिलाओं को तीन बच्चे पैदा करने चाहिए। हालांकि उन्होंने खुलकर यह नहीं कहा, लेकिन वह शायद मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की कम होती प्रजनन दर की बात कर रहे थे।
दक्षिण के राज्यों की बात करें तो अगली जनगणना और परिसीमन के बाद उन्हें लोक सभा में कुछ सीटें गंवानी होंगी और वहां जन्मदर बढ़ाना प्राथमिकता नजर आ रहा है। यह कारगर नहीं होने वाला। महिलाएं केवल कुछ लाभ पाने या राजनीतिक वजहों से अधिक बच्चे नहीं पैदा करना चाहेंगी। जन्म दर में कमी आनी तब शुरू होती है जब आर्थिक हालात सुधरते हैं और महिलाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार मिलते हैं। जैसे-जैसे आर्थिक स्थिति सुधरती है, बच्चों को पालने का खर्च भी बढ़ता है क्योंकि स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होती हैं। ऐसे में केवल नकदी या मातृत्व अवकाश से बात नहीं बनेगी।
Diese Geschichte stammt aus der December 07, 2024-Ausgabe von Business Standard - Hindi.
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