'क्रेन में लगा झटका वास्तविक है। यह 1940 के दशक के बाद का सबसे बड़ा भूमि युद्ध हो गया है, जो 15 महीने से जारी है। पूरी योजना उलट गई है। अमेरिका और नाटो ने इस विश्वास के साथ रूस - यूक्रेन विवाद में हस्तक्षेप शुरू किया था कि यह छद्म युद्ध यूरोप में रूसी प्रभाव को कम करने का एकमात्र तरीका है। इसका मकसद रूस को आकार में छोटा करना और विश्व में बहुध्रुवीय व्यवस्था को समाप्त करना भी था। कागज पर यह शैतानी न सही, पर एक चतुर रणनीति थी। अनुमान था कि नाटो हथियारों से लैस यूक्रेन जल्दी ही रूस पर भारी पड़ेगा। कम से कम पश्चिमी नीतिनिर्माताओं ने यह अनुमान तो लगाया ही था कि रूस वर्षों तक एक और अफगानिस्तान में फंसा रहेगा, जबकि अमेरिका एक महाशक्ति के रूप में पुनर्जीवित होकर काबिज हो जाएगा।
जो सोचा गया था, उसके उलट हो गया। यह छद्म युद्ध हर मोर्चे पर एक ऐसे संघर्ष में बदल गया, जिसे एक सीमित महायुद्ध के रूप में वर्गीकृत करना ज्यादा सटीक होगा। अमेरिका एक बड़े लक्ष्य लेकर चला था, पर अब उसके लक्ष्य में कमी आई है। इस बार विश्व समुदाय पश्चिम के पीछे लाइन लगाकर खड़ा नहीं हुआ, बल्कि ईमानदारी से दूर रहा है। रूस को बदनाम करने और अमेरिकी प्रतिबंधों को गले लगाने की नाटो की योजना के प्रति गजब का इनकार दिखा है। दूसरी ओर, ग्लोबल साउथ या गरीब, विकासशील देशों को अपने हितों को आगे बढ़ाने और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के स्वागत का मौका मिल गया है। अब दुनिया के कमजोर देश भी प्रमुख देशों के साथ बेहतर सौदेबाजी कर सकते हैं। भारत की विदेश नीति को भी इस प्रवृत्ति के तहत देखा जा सकता है। आज दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, मध्य पूर्व और यहां तक कि पूर्वी एशिया के कुछ हिस्सों में भी यह प्रवृत्ति देखी जा सकती है।
Diese Geschichte stammt aus der June 03, 2023-Ausgabe von Hindustan Times Hindi.
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