इंडियन पीनल कोड की जगह अब भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है। उम्मीद की जा रही थी कि नए कानूनों (BNSS section 479) में अब इंसाफ मिलने में पहले की तुलना में कम समय लगेगा। इससे लंबित पड़े मुकदमों का बोझ भी अदालतों पर कम होगा। इससे न सिर्फ अंडरट्रायल कैदियों को राहत मिलेगी, बल्कि जेल में गंभीर मामलों में बंद कैदियों के बाहर आने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अब लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को राहत दी है और उनकी जमानत का रास्ता साफकर दिया है।
अंडरट्रायल कैदियों की जमानत को हरी झंडी
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत को झरी झंडी दिखा दी है। दरअसल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विचाराधीन कैदी को हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि से संबंधित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 की धारा 479 देशभर के विचाराधीन कैदियों पर पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अभिवेदन पर गौर किया और देशभर के जेल अधीक्षकों को निर्देश दिया कि वे प्रावधान की उपधारा में उल्लिखित अवधि का एक तिहाई पूरा होने पर संबंधित अदालतों के जरिए विचाराधीन कैदियों के आवेदनों पर कार्रवाई करें। कोर्ट ने आदेश दिया कि ये कदम जल्द यानी कि 3 महीने के भीतर उठाए जाने चाहिए।
बीएनएसएस की धारा 479 में एक तिहाई सजा भुगत चुके पहली बार के आरोपियों को जमानत देने का प्रावधान है। धारा 479 कहती है कि पहली बार के विचाराधीन कैदी अगर अपनी अधिकतम सजा की एक तिहाई सजा काट लेता है तो कोर्ट उसे बॉन्ड पर रिहा कर सकता है। हालांकि ये कानून सजा ए मौत या उम्रकैद काट रहे अपराधियों पर लागू नहीं है। बता दें कि भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से प्रभावी हुए थे, जिन्होंने ब्रिटिश काल की भारतीय दंड संहिता की जगह ली है।
Diese Geschichte stammt aus der 28 August 2024-Ausgabe von Rising Indore.
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