गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर कांग्रेस पार्टी ने कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया। आजाद ने चिट्ठी में राहुल गांधी को निशाना बनाया, पर उन्होंने भी जवाब नहीं दिया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस सार्वजनिक चर्चा से बचना चाहती है। लेकिन संकेत हैं कि पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ रहा है। दो साल से राहुल गांधी कह रहे हैं कि जिन्हें जाना है, वे जाएं। 24 अगस्त, 2020 को जब पहली बार जी- 23 के पत्र पर विचार-विमर्श हुआ, तब उन्होंने इसे साजिश बताया था। विश्लेषक मानते हैं कि उनका यह रवैया पार्टी का सफाया कर देगा।
पार्टी का आंतरिक असंतोष अक्तूबर में होने वाले संगठनात्मक चुनाव के दौरान या उसके बाद भड़के तो हैरत नहीं होनी चाहिए। राहुल के बारे में मान लिया गया है कि वे अध्यक्ष नहीं बनेंगे। यदि वे बने भी, तो उन्हीं कारणों से असंतोष जारी रहेगा, जिन कारणों से गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफा दिया है। नया अध्यक्ष परिवार से बाहर का होगा, तो उसके सामने दूसरे किस्म की दिक्कतें आएंगी। वह मन से काम नहीं कर सकेगा, क्योंकि उसे ऊपरी आदेशों को मानना होगा। स्वतंत्र रूप से काम करने की कोशिश करेगा, तो उसका चलना मुश्किल होगा। परिवार का विश्वस्त होने के बावजूद उसे दूसरे नेताओं के साथ पटरी बैठाने में भी दिक्कतें आएंगी।
राहुल से शिकायतें
Diese Geschichte stammt aus der September 11, 2022-Ausgabe von Panchjanya.
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