कुछ साल से देश में एक चलन-सा चल पड़ा है कि कैसे हिन्दू संस्कृति के घोषित आयामों को गैर-हिन्दू साबित किया जाए। हाल ही में दीपावली और छठ जैसे पर्वों तक को गैर-कर्मकांड वाले गैर-हिन्दू पर्व बताने का प्रयास किया गया। इससे पहले चोल साम्राज्य पर आई मणिरत्नम की फिल्म पीएस 1 के बाद महान राज्य चोल को गैर-हिन्दू बताने का विवाद हुआ। इस बहस के मूल में वह वामपंथी विचार है, जिसने 70 साल में धीरे-धीरे यह बात नीचे तक रोप दी कि वन में रहने वाले, स्थानीय देवों को पूजने वाले, प्रकृति के उपासक 'वनवासी हिन्दू नहीं हैं।' वामपंथियों ने छद्म तरीके से पहले भोले-भाले वनवासी समाज के एक बड़े वर्ग के अंदर से हिन्दू भाव को समाप्त किया, फिर राज्य को खलनायक साबित करके, उनमें से एक बड़े वर्ग को हथियार देकर नक्सल और माओवाद की तरफ खींचा।
1937 में प्रदर्शित‘ गंगावतरण’ दादासाहब फाल्के की एकमात्र बोलती फिल्म थी। उन्होंने 23 ऐतिहासिक-पौराणिक फिल्में और 180 लघु फिल्में बनाईं। फिल्म 'लंका दहन' से फाल्के को इतनी कमाई हुई कि उन्हें बोरों में सिक्के भरकर बैलगाड़ी से ले जाने पड़े।भारतीय सिनेमा के विकास में उनकी पत्नी सरस्वती का भी बड़ा योगदान है।
1918 में ' सीता स्वयंवर' बना कर बाबूराव पेंटर फिल्मी दुनिया में आए। उन्होंने दर्जनों पौराणिक, ऐतिहासिक व उपन्यास आधारित फिल्में बनाईं। फिल्म में कैमरा, इनडोर शूटिंग, जनरेटर, रिफ्लेक्टर का चलन शुरू किया। वी. शांताराम उनकी ही खोज थे, जिन्होंने उनकी फिल्म 'सुरेखाहरण' के निर्देशन से अपने करियर की शुरुआत की।
वामपंथी षड्यंत्र पर प्रहार
Diese Geschichte stammt aus der November 20, 2022-Ausgabe von Panchjanya.
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है
नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया
नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई