ऋग्वेद में उल्लेख है कि सृष्टि पर सिर्फ जल ही था और वहीं सबसे पहले जीवन का अंश बना। आकाशीय, सतही, कुएं और बहते जल का भेद भी इस वेद में दर्ज है। पंचतत्वों में शामिल 'अपस' यानी पानी के सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पक्ष का ऋषियों-मनीषियों ने सूक्ष्म अवलोकन किया है। वैदिक काल की सिंधु-सरस्वती सभ्यता या हड़प्पा, मोहनजोदाड़ो सहित सभी भारतीय सभ्यताओं में पानी को लेकर समोया विवेचन आधुनिक विज्ञान के पैमानों पर तो खरा है ही, तकनीक, वास्तु और लोक-संस्कृति और जल संरक्षण की खनखनाती परंपराओं की जीवंत मिसालों के साथ पूरी मजबूती से पांव जमाए खड़ा है। फिर भी भारत में पानी को लेकर घोर संकट है तो इसे सिरे से समझना होगा और इसके समाधान के लिए जोरशोर से जुटना होगा।
‘सुमंगलम्' में जल-जीवन
हम प्रकृति की सार-सम्भाल में हमारी ज्ञान परम्पराओं को रेखांकित कर पाएं, यह ज़िम्मा देश की कुछ दिग्गज सामाजिक संस्थाओं ने लिया है। पंचमहाभूत के पांचों तत्व यानी वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश और जल में 'सुजलाम्' की बात करने के लिए भारत रत्न नाना जी देशमुख द्वारा स्थापित दीन दयाल शोध संस्थान जुटा है। पानी के प्रबंधन के लिए 'दौड़ते को चलता करने और चलते हुए को रोकने' की दृष्टि वाले नाना जी ने एकात्म मानव दर्शन के विचार से हर कार्य को साधा। उसी भाव के साथ जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से देश भर के जल सारथियों को साथ लेकर जो बुनावट शुरू हुई है, उससे सीखने और उस पर अमल करने की तैयारी हम सबकी होनी चाहिए। पानी की चर्चा में शामिल होकर मैंने देखा कि जल की बात कुओं- बावड़ियोंतालाबों और नदियों के किनारे बैठ कर घर-परिवार जैसे माहौल में होनी शुरू हुई और इस दौरान आध्यात्मिक और धार्मिक पक्ष खुलकर सामने आया । लोक संस्कृति के नजरिए को देश भर के शिक्षार्थियों और गुजरात विद्यापीठ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विद्यार्थियों ने जिस तरह पेश किया, उसमें जल-जंगल-जमीनजानवर की रखवाली में वनवासियों के योगदान को ही अव्वल रखा। जमीनी काम करने वाले लोगों ने जाजम पर बैठकर पानीपहाड़- पेड़ के साथ बुने लोकगीतों, प्रथाओं, जीवन शैली की बात छेड़ी तो शहरी दौड़ में रौंदी गई गांवों की मिट्टी और मिठास का दर्द भी जाहिर हुआ।
मध्य भारत की जल-विरासत
Diese Geschichte stammt aus der November 20, 2022-Ausgabe von Panchjanya.
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