जनवरी 2017 की बात है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की अगुआई वाली सपा सरकार का कार्यकाल पूरा होने को था और चुनाव सिर पर था। उस समय एक जनसभा में अखिलेश ने बड़े गर्व से एक किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा था, "प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों की दशा बहुत खराब है। मैं एक स्कूल में गया। वहां एक बच्चे से पूछा कि मुझे पहचानते हो? बच्चे ने कहा- हां। आपको पहचानता हूं। आप राहुल गांधी हैं।"
कुछ समय पहले बजट सत्र के दौरान विधानसभा में उन्होंने यही किस्सा फिर सुनाया तो सपा सदस्यों के ठहाकों से सदन गूंज गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। फिर गंभीर अंदाज में अखिलेश ने कहा था, "सरकार को इसका दुख नहीं है कि प्राथमिक शिक्षा में प्रदेश नीचे से चौथे स्थान पर है। इन्हें इस बात की खुशी है कि मैंने कांग्रेस के एक बड़े नेता का नाम ले लिया।" इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, "बच्चे भोले-भाले होते हैं, मन के सच्चे होते हैं। जो भी बोला होगा सोच-समझ कर ही बोला होगा।" इस बार बारी भाजपा सदस्यों की थी। सदन एक बार फिर ठहाकों से गूंज उठा।
शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन
बेसिक शिक्षा की खस्ताहाल स्थिति से अवगत होने के बाद भी अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। उनके कार्यकाल में 2016-17 में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में जहां लगभग 1.52 करोड़ विद्यार्थियों ने दाखिला लिया, वहीं योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर 1.88 करोड़ हो गई। अखिलेश के शासनकाल में विडंबना यह थी कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में तो हर विद्यार्थी दाखिला लेना चाहता था, लेकिन कोई भी संपन्न व्यक्ति अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वर्तमान भाजपा सरकार ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। गत दिनों मंत्रिमंडल बैठक में प्रस्ताव पारित कर स्कूल शिक्षा महानिदेशक का पद सृजित किया गया, जो शिक्षण कार्य में आमूलचूल परिवर्तन के लिए प्रभावी कदम उठाएंगे। महानिदेशक को प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
Diese Geschichte stammt aus der November 20, 2022-Ausgabe von Panchjanya.
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