इस्लाम बनाम अवाम
Panchjanya|November 27, 2022
ईरान में लगभग दो महीने से हिजाब विरोधी आंदोलन जारी। महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे। उधर धीरे-धीरे व्यापारी और मजदूर वर्ग भी प्रदर्शनों में शामिल क्योंकि गश्त-ए-इरशाद और बासिजी का डर खत्म हो रहा
आदर्श सिंह
इस्लाम बनाम अवाम

ह दशकों का दबा हुआ गुस्सा था, जिसे भड़कने के लिए बस एक चिनगारी की जरूरत थी। ठीक से हिजाब नहीं पहनने के आरोप में ईरान की राजधानी तेहरान में मजहबी पुलिस गश्त-ए-इरशाद द्वारा एक 22 वर्षीया कुर्द युवती महसा अमीनी की गिरफ्तारी और 16 सितंबर को उसकी मौत के अगले दिन से तेहरान सहित ईरान के सभी शहरों में हिजाब के विरुद्ध जारी प्रदर्शनों को अब दो महीने होने को हैं। अगर ईरानियन रेसिस्टेंस काउंसिल के दावों पर विश्वास करें तो अयातुल्लाओं के दमनकारी तंत्र को ठेंगा दिखाते हुए हिजाब के विरुद्ध जारी इस आंदोलन में अब तक कम से कम 400 लोग मारे जा चुके हैं। मानवाधिकार समूहों के अनुसार, इसमें कम से कम 50 अवयस्क किशोर-किशोरियां हैं। 20,000 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए हैं। इसके बावजूद ईरान के गली-कूचों में जान-जेंदगी-आजादी (स्त्री, जीवन, स्वतंत्रता) के नारे अब भी गूंज रहे हैं। यह नारा आजादी की लड़ाई लड़ी रही कुर्द महिलाओं का था, लेकिन अब यह ईरानी महिलाओं के लिए उनके गरिमा से जीने के अधिकार के संघर्ष का नारा बन गया है। महिलाएं बेखौफ सड़कों-चौराहों पर हिजाब को आग लगा रही हैं और गश्त-ए-इरशाद भीड़ के सामने असहाय है।

राजनीति और समाज में हिजाब

Diese Geschichte stammt aus der November 27, 2022-Ausgabe von Panchjanya.

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