अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था, "व्यक्ति को सशक्त बनाने का मतलब राष्ट्र को सशक्त बनाना है। और सशक्तिकरण सबसे अच्छी तरह तब होता है, जब तेजी से सामाजिक परिवर्तन के साथ तेजी से आर्थिक विकास किया जाता है।" वास्तव में यह शब्द वही व्यक्ति पूरे मन से कह सकता है, जिसकी रग-रग में देशप्रेम बसता हो।
भारत स्वतंत्र था। स्वतंत्रता के बाद कई सरकारें आईं और गईं। कई योजनाएं भी बनीं। लेकिन तमाम टिप्पणीकार और व्यंग्यकार, यहां तक कि फिल्मकार भी कहने लगे थे, "योजनाएं सिर्फ कागजों पर बनती हैं।" भारत की लचर आर्थिक विकास दर के लिए 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' जैसा ताना मारा जाता था। किसी में सामर्थ्य नहीं थी कि इसका उत्तर दे सके। वैभव और विकास था, स्वास्थ्य सेवा और 51 उच्च शिक्षा थी, गाड़ियां और सड़कें थीं, टेलीफोन और बाकी उपकरण थे, बिजली थी, लेकिन पूरे भारत के लिए नहीं, सिर्फ कुछ लोगों के लिए सिर्फ आर्थिक विकास दर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय जगत में भी भारत एक दीन-हीन देश की तरह ही खड़ा था। सशक्त- समर्थ देशों की कतार से कोसों दूर।
अटल जी ने इसका नए सिरे से निर्माण किया और भारत की जनता को, समाज को, भारत की धरती को, भारत के किसानों को, उद्योगों को, भारत की सेना को, भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले राजदूतों को वह सब सौंप दिया, जो एक समर्थ-सशक्त और स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए जरूरी था। राष्ट्र निर्माण के लिए कुछ सुधार जा सकता है कि भी जरूरी थे। निःसंकोच कहा अटल जी ने वे सुधार कर दिखाए, जो उनके पहले तक शायद कल्पनातीत थे। हर दृष्टि से अटल जी नए, सशक्त, समर्थ और समृद्ध भारत के निर्माता साबित हुए।
Diese Geschichte stammt aus der December 25, 2022-Ausgabe von Panchjanya.
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