गोवा में आयोजित 'सागर मंथन' कार्यक्रम में प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार के साथ एक सत्र का संचालन पत्रकार तृप्ति श्रीवास्तव ने किया। प्रभात कुमार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व, 'पाञ्चजन्य' के साथ उनके जुड़ाव और प्रकाशन व्यवसाय की नैतिकता पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि प्रकाशन व्यवसाय नैतिकता और दायित्वबोध वाला पेशा है। एक प्रकाशक के तौर पर कुछ भी छाप देना उचित नहीं होता। इसलिए हम जो पुस्तकें प्रकाशित करते हैं, उसका उद्देश्य होता है कि वे समाज को दिशा देने वाली हों, समाज का प्रबोधन करने वाली हों। इसलिए अटल जी हमेशा आशीर्वाद देते थे। अटल जी ने हमारी अनेक पुस्तकों का लोकार्पण किया और उनसे निरंतर प्रोत्साहन मिला। उनका जो प्रेम मिला, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। अटल जी सचमुच अटल हैं। उनकी लेखनी, उनके विचार, उनके शब्द सदैव हमें प्रोत्साहित करते रहेंगे। हमारा मार्ग प्रशस्त करेंगे। अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में उन्होंने शुचिता का जो मार्ग दिखाया है, वह अनुकरणीय है।
1996 में जब वे पहली बार 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने, तब नरेंद्र मोहन की पुस्तक 'धर्म और सांप्रदायिकता' के लोकार्पण के अवसर पर अटल जी ने कहा, "कभी-कभी लगता है कि मेरी पुस्तकें भी इतनी सुंदर रूप में छपें।" 1998 में हमें उनके संसदीय भाषणों का संकलन चार खंडों में प्रकाशित करने का अवसर मिला। यह संयोग ही था कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद ही उसका प्रकाशन हुआ। एक कवि होने के नाते अटल जी साहित्य और साहित्यकारों की चिंता करते थे, उनको प्रोत्साहित भी करते थे। वे भाषा के प्रति भी बहुत सजग थे। उनके प्रधानमंत्री रहते प्रधानमंत्री निवास पंचवटी में हमने जितने लोकार्पण समारोह आयोजित किए, वह अपने आप में एक कीर्तिमान है। प्रायः हर महीने, दो महीने में वे किसी न किसी पुस्तक का लोकार्पण करते थे। अटल जी से इतना स्नेह, अपनत्व मिला, जो दुर्लभ है।
Diese Geschichte stammt aus der January 08, 2023-Ausgabe von Panchjanya.
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