हमें इतिहास क्या पढ़ाया गया, यह एक विषय है। हमारे वास्तविक इतिहास को विस्मृत कराने की कोशिशें की गई, यह एक और विषय है। लेकिन इतिहास के जिन अंगारों को राख के नीचे नहीं दबाया जा सकता है, मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि उनमें से एक है। इसके इतिहास को विस्मृत कराने की कोशिशें अब पूरी तरह विफल हो चुकी हैं और हमारी स्मृतियां फिर प्रज्ज्वलित हैं। स्वतंत्रता के बाद देश का पुनर्निर्माण उस तर्ज पर किया जाना था, जिससे भारत की भावना पुनर्जाग्रत होती, जिसे विदेशी आक्रमणकारियों ने धीरे-धीरे और अलग-अलग तरीकों से समाप्त कर दिया था। लेकिन दुर्भाग्य से, इसके विपरीत भारत को अपनी संपूर्ण ज्ञान आधारित विरासत को भूलने के लिए प्रशिक्षित किया जाता रहा। अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का उसी स्थान पर पुनर्निर्माण करने के प्रयास नए सिरे से शुरू हुए हैं, जहां उसे नष्ट किया गया था।
जो भी मथुरा की यात्रा करता है, उसे यह अपनी आंखों से देखना पड़ता है कि श्रीकृष्ण का वास्तविक जन्मस्थान मंदिर औरंगजेब द्वारा उसे नष्ट करके बनाई गई विशाल मस्जिद की दीवार के भीतर है। वह वहां से कितनी पीड़ा के साथ लौटता होगा, इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है। इस पीड़ा और अन्याय के निवारण के लिए बात न्यायालय पहुंची है।
गत 24 दिसंबर, 2022 को मथुरा की अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) सोनिका वर्मा ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद ईदगाह मामले में एक अभूतपूर्व आदेश दिया है। इसके अनुसार शाही मस्जिद ईदगाह का अमीन से निरीक्षण कराया जाएगा। इसकी रपट 20 जनवरी को न्यायालय के सामने प्रस्तुत की जाएगी। बता दें कि गत आठ दिसंबर को 'हिंदू सेना' नामक एक संगठन ने याचिका दायर कर मांग की थी कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से मस्जिद ईदगाह को हटाया जाए। इसकी सुनवाई करते हुए उपरोक्त आदेश दिया गया। 'हिंदू सेना' के संस्थापक विष्णु गुप्ता का मानना है कि यह मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्ति की है ओर ले जाने वाला कदम है।
हिंदू पक्ष बता रहा अपनी जीत
Diese Geschichte stammt aus der January 08, 2023-Ausgabe von Panchjanya.
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