विश्व मंगल की प्रेरणा से सम्पूर्ण जगत में श्रेष्ठता के प्रसार की भारतीय परम्परा इस ध्येय वाक्य 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' अर्थात् सम्पूर्ण विश्व को हम श्रेष्ठ बनाएं - में परिलक्षित होती है। जगत-कल्याण की अन्तःप्रेरणा से विश्व को ज्ञान, विज्ञान, भाषा विज्ञान, लिपि, गणित, योग और मनुष्य की मानवतावादी चेतना से अनुप्राणित करने के लिए भारतीय ऋषि, मनीषी व विद्वज्जन अनादिकाल से प्रवास करते आए हैं। इसके परिणामस्वरूप सुदुर पूर्व में दक्षिण-पूर्व एशिया से मध्य एशिया, अरब जगत, यूरोप व लैटिन अमेरिका पर्यन्त भारतीय संस्कृति का प्रभाव सर्वत्र दिखाई देता है।
योग का व्यापक प्रसार
विगत कई शताब्दियों में भारत के योग गुरुओं के प्रवास का ही परिणाम है कि आज योग के अभ्यासी सभी महाद्वीपों में बड़ी संख्या में देखे जाते हैं। अमेरिका में प्रत्येक चौथा व्यक्ति व यूरोप में प्रत्येक पांचवां व्यक्ति योग का अभ्यास करता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने भाषण में जब अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस आयोजित करने का प्रस्ताव दिया, तब न्यूनतम अवधि में वह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया था। भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव की प्रस्तुति के पूर्व 28 जून, 2013 को ऐसा ही प्रस्ताव पुर्तगाल की संसद सर्वसम्मति से पारित कर यूनेस्को को भेज चुकी थी। यह पिछली कई शताब्दियों में यूरोप व अमेरिका सहित कई देशों में गए भारतीय योगाचार्यों के प्रयासों का ही परिणाम था।
पांच सहस्राब्दियों का इतिहास
Diese Geschichte stammt aus der January 15, 2023-Ausgabe von Panchjanya.
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