राष्ट्रवादी विचार की अभिव्यक्ति है पाञ्चजन्य
Panchjanya|29 January 2023
पाञ्चजन्य के हीरक जयंती समारोह में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में पाञ्चजन्य का अपनी यात्रा के 75 वर्ष पूरे करने को भारतीय पत्रकारिता जगत की एक महत्वपूर्ण घटना बताया। उन्होंने कहा कि अपने शुरुआती दिनों से ही तत्कालीन सरकार द्वारा बार-बार पाबंदी लगाए जाने के बावजूद पाञ्चजन्य ने अपना राष्ट्रवादी दर्शन बनाए रखा
राष्ट्रवादी विचार की अभिव्यक्ति है पाञ्चजन्य

पाञ्चजन्य की पूरी टीम बधाई की पात्र है कि आज आप लोग अपनी यात्रा में एक बड़ा ही महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार कर चुके हैं। आजाद भारत की प्रमुख साप्ताहिक पत्रिकाओं में राष्ट्रवादी विचारधारा से ओत-प्रोत पाञ्चजन्य का अपनी यात्रा के 75 वर्ष पूरे करना भारतीय पत्रकारिता जगत की एक महत्वपूर्ण घटना है।

भारत में पत्रकारिता की शुरुआत सामाजिक सुधारों और आजादी के हथियार के तौर पर ही हुई थी। उस वक्त पत्रकारिता एक मिशन थी, देश को आजाद कराने का, गुलामी से मुक्ति पाने का मिशन। आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता जागृति और जोश पैदा कर रही थी। शायद इसीलिए अकबर इलाहाबादी ने लिखा- 'खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो। जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।' 

अंग्रेजी शासन के दमन और शोषण के खिलाफ पत्रकारिता लामबंद हुई। कई संपादकों और पत्रकारों ने आजादी के 'शस्त्रहीन' संघर्ष में अपनी आहुति दी। खतरे झेले, यातनाएं सहीं, पर विचलित नहीं हुए। स्वाधीनता की अग्नि में तपकर भारत में पत्रकारिता फली-फूली। 

पत्रकारिता अपने चिरंतन मूल्यों में बुद्धिमान समाज की सबसे उद्देश्यपरक शक्ति है। कभी वह अंग्रेजों की दमनकारी ताकत के खिलाफ लड़ी थी तो कभी उसने आपात्काल की निरंकुशता और तानाशाही के खिलाफ संघर्ष किया। तो कभी वह सत्ता की ताकत के दुरुपयोग को रोकने का स्वर गुंजाती रही। 

प्रकृति में हम दो प्रकार के तत्वों से घिरे हैं, एक है बहुमूल्य और दूसरा अमूल्य। बहुमूल्य शब्द अर्थशास्त्र से आता है। वे वस्तुएं जो कम हैं, उनकी कीमत अधिक है। यह आवश्यक नहीं कि वह वस्तु सबके लिए जरूरी हो। ऐसा भी नहीं कि इसके बिना काम नहीं चल सकता। लेकिन जिन्हें यह चाहिए, उनके लिए पर्याप्त नहीं है। जैसे सोना, चांदी, हीरा आदि। अमूल्य वह है जो सबको चाहिए, और जिसका कोई विकल्प नहीं है। जैसे हवा, पानी, आकाश। इनका कोई मूल्य नहीं है। ये अमूल्य हैं, क्योंकि इनके बिना जीवन नहीं हो सकता। 

पत्रकारिता को मैं अमूल्य वर्ग का तत्व मानता हूं, प्राणवायु जैसा। पत्रकारिता सभ्य मानव जीवन की प्राणवायु है। लोकतंत्र से पहले भी समाज में पत्रकारिता जैसा दायित्व निभाने वाली कलाएं, दक्षताएं और व्यवस्थाएं थीं। प्राचीन भारत में नाटक, ग्रंथ, काव्य इस उद्देश्य को पूरा करते थे।

Diese Geschichte stammt aus der 29 January 2023-Ausgabe von Panchjanya.

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