![पितृदोष अर्थ, कारण एवं निवारण पितृदोष अर्थ, कारण एवं निवारण](https://cdn.magzter.com/1382621400/1661336224/articles/RuIiq5b1Y1661424433345/1661424930511.jpg)
हमारे पूर्वज या पारिवारिक सदस्य जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें ‘पितृ’ कहते हैं। पितृ हमारे और ईश्वर के बीच की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। इनकी क्षमता एवं ताकत ईश्वरीय शक्ति जैसी होती है। पितृ मानव और ईश्वर के बीच एक योनि है, जिसमें मरणोपरान्त मनुष्य की आत्मा कुछ समय के लिए निवास करती है।
‘पितृ’ का अर्थ है 'पिता', किन्तु ‘पितृ’ शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है : प्रथम व्यक्ति के आगे के तीन मृत पूर्वज अथवा मानव जाति के प्रारम्भ या प्राचीन पूर्वज, जो एक पृथक् लोक के अधिवासी के रूप में कल्पित हैं। दूसरे अर्थ के लिए ऋग्वेद में उल्लेख है कि पितृगण निम्न, मध्यम एवं उच्च तीन श्रेणियों में व्यक्त हुए हैं। वे प्राचीन एवं पाश्चात्यकालीन कहे गए हैं।
पितृगण अग्नि को ज्ञात हैं। यद्यपि सभी पितृगण अपने वंशजों को ज्ञात नहीं होते हैं। पितृ अधिकतर देवों, विशेषतः यम के साथ आनन्द मनाते हुए व्यक्त किये गए हैं। वे सोमप्रेमी होते हैं, वे कुश पर बैठते हैं, वे अग्नि एवं इन्द्र के साथ आहुतियाँ लेने आते हैं और अग्नि उनके पास आहुतियाँ ले जाती हैं। जल जाने के उपरान्त मृतात्मा को अग्नि पितरों के पास ले जाती है।
पितृदोष की उत्पत्ति का कारण
हमारे पूर्वज, पितृ जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति एवं असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता। ऐसे में वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन अथवा उपाय करें, जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके।
उनकी भटकती हुई आत्मा को सन्तानों से अनेक आशाएँ होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशीर्वाद देते हैं। यदि पितृ असंतुष्ट रहें, तो सन्तान की कुण्डली दूषित हो जाती है, जिसके कारण अनेक प्रकार के कष्ट एवं परेशानियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप कष्ट तथा दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। हमारे जीवन में कई समस्याएँ मूलभूत आध्यात्मिक कारणों से होती हैं। उन कारणों में से एक है, मृत पूर्वजों की अतृप्ति। वंशजों को होने वाला कष्ट, जिसे ‘पितृ दोष’ कहते हैं। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही 'पितृ दोष' है।
Diese Geschichte stammt aus der September 2022-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
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देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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