भविष्यकथन में ग्रहबल की गणना अति आवश्यक है। यदि ग्रह योगकारक है, तो वह पूर्ण फल तभी दे सकता है, जब वह बली हो । कारक ग्रह निष्फल हो सकता है, यदि वह निर्बल हो। इस बलाबल को जानने के लिए ज्योतिष की सर्वोत्कृष्ट पद्धति है – 'षड्बल'।
प्रश्न : ज्योतिष में षड्बल का क्या महत्त्व है?
उत्तर : षड्बल फलित एवं सिद्धान्त ज्योतिष का अभिन्न अंग है, जिसमें ग्रहों की शक्तियों का अध्ययन किया जाता है। इन शक्तियों के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य फलित कथन में दृढ़ता लाना है। किसी भी ग्रह के बल को जाने बिना उसका फलकथन सही से नहीं किया जा सकता। इसलिए ज्योतिष में षड्बल का विशेष महत्त्व होता है।
प्रश्न : षड्बल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर : षड्बल अर्थात छह प्रकार के बल होते हैं : 1. स्थानबल, 2. दिग्बल, 3. कालबल, 4. चेष्टाबल, 5. नैसर्गिक बल, 6. दृष्टिबल। इन्हें ‘षड्बल' कहते हैं।
प्रश्न: ग्रह स्थानबल कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर : ग्रह अपना स्थान बल पाँच प्रकार से प्राप्त करता है। 1. उच्च बल, 2. सप्तवर्गीय बल, 3. ओजयुग्म बल, 4. केंद्रादि बल एवं 5. द्रेष्काण बल।
1. उच्च बल : ग्रह अपने उच्च स्थान बिन्दु से नीच स्थान बिन्दु के मध्य स्थिति अनुसार बल प्राप्त करता है। सर्वोच्च बिन्दु पर ग्रह को पूर्ण बल प्राप्त होता है और नीचतम बिन्दु पर शून्य बल और जैसे-जैसे ग्रह अपने नीचतम बिन्दु से सर्वोच्च बिन्दु की तरफ बढ़ता है, वैसे ही उस ग्रह का बल भी बढ़ता जाता है।
2. सप्तवर्गीय बल : ग्रह के सप्तवर्गों में प्राप्त बल को 'सप्तवर्गीय बल' कहते हैं। ये सात वर्ग-होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवांश, दशमांश, द्वादशांश और त्रिंशांश हैं। मूलत्रिकोण, स्वराशि, अधिमित्र - मित्र राशि और शत्रु-अधिशत्रु राशि में स्थिति अनुसार प्रत्येक वर्ग में ग्रह को बल प्राप्त होता है। ग्रहों की शत्रुता मित्रता की स्थिति के पंचधामैत्री चक्र के अनुसार ही सप्तवर्गों में बल का मूल्यांकन किया जाता है।
Diese Geschichte stammt aus der January 2023-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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