62 वर्षीय शिवकुमार कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हैं तथा कुशल संगठनकर्ता माने जाते हैं। सन् 2018 में जनतादल सेक्युलर के साथ गठबंधन में सरकार बनाने में इनकी विशेष भूमिका रही थी। राज्यसभा चुनावों में गुजरात से अहमद पटेल को जिताने में भी इन्होंने अपनी राजनीतिक प्रतिभा का लोहा मनवाया था। कनार्टक की नई सरकार में उन्होंने उप-मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है।
डी. के. शिवकुमार का जन्म 15 मई, 1961 (जन्मपत्र के अनुसार) को बंगलुरू के पास कनकपुरा में हुआ था। उनके पिता का नाम केम्पेगौडा तथा माता का नाम गोरम्मा है। वे वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। इनके बड़े भाई डी. के. सुरेश भी कर्नाटक से कांग्रेस के सांसद हैं। डी.के. शिवकुमार का राजनीति में पदार्पण छात्रनेता के रूप में हुआ। 1989 में उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और उसमें जीत हासिल की। केवल 28 वर्ष की अवस्था में वे विधानसभा पहुँच गए। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने पहले ही कार्यकाल में मन्त्रीपद प्राप्त हो गया। वे लगातार विधानसभा चुनाव जीतते रहे और उनका कद राजनीति में बढ़ता रहा। सन् 1999 में उन्होंने एच.डी. कुमारास्वामी को हराया था। देवगौड़ा परिवार के तीन लोगों को वे चुनावों में परास्त का चुके हैं। 2023 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने 1,23,000 मतों से विजय अर्जित की है। वे भारत के सर्वाधिक धनाढ्य राजनेताओं में माने जाते हैं। 2023 के चुनावों में उन्होंने अपनी सम्पत्ति 1200 करोड़ रुपए घोषित की थी।
आइए, देखते हैं कि ऐसे कौनसे योग हैं, जिनसे वे कुछ ही अवधि में कर्नाटक के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार होने लगे।
डी. के. शिवकुमार
Diese Geschichte stammt aus der June 2023-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।