तन्त्र ग्रन्थों में हनूमान् जी के कई मन्त्र एवं स्तोत्र वर्णित हैं। सुदर्शनसंहिता में हनूमान् जी का विभीषण कृत हनुमत्स्तोत्र दिया गया है, जो सभी प्रकार के भयों का नाश करता है। यह स्तोत्र भय, रोग, व्याधि, पीड़ा, राजभय आदि से मुक्ति में सहायक है, तो वहीं ग्रहजनित पीड़ा भी दूर होती है। साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। स्तोत्र की फलश्रुति में इनका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। हनूमान् जी की साधनाओं में शुद्धता एवं पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा सम्भव हो सके, तो जमीन पर सोना चाहिए। हनूमान् जी को स्वयं के हाथ से निर्मित चूरमे का भोग लगाना चाहिए।
हनूमान् जयन्ती के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रीराम और हनुमान् जी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। तदुपरान्त प्रस्तुत हनुमत्स्तोत्र का पाठ निम्नलिखित विधि से करना चाहिए:
घर के पूजा स्थान पर अथवा किसी एकान्त कक्ष में एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर सिन्दूर या केसर मिश्रित अक्षत से अष्टदल कमल का निर्माण करना चाहिए और उस पर हनूमान् जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए। तदुपरान्त निम्नलिखित मन्त्र से हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए:
बालार्कायुत-तेजसं त्रिभुवन-प्रक्षोभकं सुन्दरं, सुग्रीवादि-समस्त-वानर-गणैः संसेव्य-पादाम्बुजम्।
नादेनैव समस्त-राक्षस गणान् सन्त्रासयन्तं प्रभु, श्रीमद्-राम-पदाम्बुज-स्मृति-रतं ध्याय वात्मजम॥
अब निम्नलिखित मन्त्रों से हनूमान् जी की मानस पूजा करनी चाहिए:
ॐ लं पृथ्व्यात्मकं गन्धं समर्पयामि।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं समर्पयामि।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं प्रापयामि।
ॐ रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं दर्शयामि।
ॐ वं जल तत्त्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि।
के मानस पूजन के पश्चात् श्रद्धाभाव से निम्नलिखित हनुमत्स्तोत्र का पाठ करना चाहिए :
॥ विभीषण कृत हनुमत्स्तोत्र॥
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे।
Diese Geschichte stammt aus der April 2024-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
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महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
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अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
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इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
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