विगत कुछ वर्षों से चैत्र पूर्णिमा अथवा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर सोशल मीडिया में यह चर्चा चलने लग जाती है कि हनुमान् जी की जन्मतिथि को 'हनुमान् जयन्ती' कहना उचित नहीं है, वरन् 'हनुमत् जन्मोत्सव' कहा जाना चाहिए।
इसका कारण देते हुए कहा जाता है कि 'जयन्ती' शब्द उन देवों अथवा महापुरुषों के जन्मदिवस के लिए आता है, जिन्होंने पृथ्वी पर जीवन जीया और अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। चूँकि हनुमान् जी चिरंजीवी हैं और इस पृथ्वी पर अभी भी मौजूद हैं, इसलिए उनकी जन्मतिथि को 'जयन्ती' कहना उचित नहीं है। चूँकि जीवित व्यक्ति के जन्मदिन पर 'जन्मोत्सव' किया जाता है, इसलिए हनुमान जी की जन्मतिथि को भी 'जन्मोत्सव' के रूप में मनाना चाहिए।
इस प्रकार के विवाद को गूगल पर सर्च करें, तो अनेक प्रतिष्ठित मीडिया समूह की वेबसाइटों में भी यह 'ज्ञान' बिना किसी सन्दर्भ के मिल जाता है। वस्तुतः इसमें कोई सत्यता नहीं है। यह एक प्रकार से सोशल मीडिया या व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान मात्र ही प्रतीत होता है। इस अन्तर का शास्त्रों में कोई सन्दर्भ नहीं मिलता। आइए, इसकी पड़ताल संस्कृत कोशों, पुराणों एवं धर्मग्रन्थों में करने का प्रयत्न करते हैं।
'जयन्ती' का मूल अर्थ 'जन्मोत्सव' नहीं
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संस्कृत में 'जयन्ती' का मूल अर्थ 'जन्मतिथि' या 'जन्मोत्सव' के रूप में नहीं मिलता। विभिन्न संस्कृत कोशों में 'जयन्ती' शब्द निम्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है-
1. गौरी या दुर्गा का एक रूप : जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। (कालिकापुराण)
2. इन्द्र की पुत्री जयन्ती वृक्षभिद्गौगोर्योरिन्द्रपु त्रीपताकयोः। (मेदिनीकोश)
3. पताका (पूर्वोक्त मेदिनीकोश)
4. वृक्ष विशेष (मेदिनीकोश, शब्दकल्पद्रुम)।
Diese Geschichte stammt aus der June 2024-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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