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दिनकर की सृजनशीलता इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि 'वादों' और 'खेमों' के दौर से गुजरती हुई उनकी सृजन-यात्रा न तो किसी वाद में बँधी और न ही किसी खास पड़ाव पर ठहरी । दिनकर की कविता का मुख्य स्वर आदि से अन्त तक केवल और केवल मानवतावादी रहा। छायावाद, प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का अभ्युदय उस दौर पर भारीभरकम और धमाकेदार घटनाएँ थीं, किन्तु दिनकर इन सबसे न केवल अप्रभावित रहे, वरन् तटस्थ भाव से अपने सृजन को नई दिशा देते रहे।
दिनकर छायावादोत्तर काल के बाद के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, प्रतिभा सम्पन्न और विचारशील कवि थे। निराला, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, महादेवी वर्मा, बच्चन, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' और पं. नरेन्द्र शर्मा जैसे कवियों की श्रृंखला में दिनकर ने अपने रचनाधर्म से एक विशिष्ट स्थान बनाया।
दरअसल दिनकर की कविता एक पौरुष काव्य है, जिसे सुनकर अन्दर एक आग-सी सुलगने लगती है। उनकी कविता में ठुमक ठुमककर चलने की नजाकत नहीं है, वरन् एक लय और रफ्तार है, जो जीवन को गतिशील करती है। दिनकर ने हिन्दी कविता को मशाल, नारी का सौन्दर्य, फूल, तितलियों, आकाश में जगमगाते सितारों, सावन की फुहारों आदि के शाब्दिक स्वप्नलोक से बाहर निकलकर और पौरुष सिंहनाद की गर्जन से भरे नए मुहावरे दिए।
ठण्डी, शीतल और स्निग्ध हिन्दी कविता के आँचल में उन्होंने जिन्दगी की सच्चाइयों में धधकते अँगारे रख दिए। दिनकर के शब्दों में तेज, ओजस्विता, प्रखरता और साहस ने हिन्दी कविता को एक नई खुरदरी छवि और यथार्थ की गरिमा प्रदान की।
Diese Geschichte stammt aus der September 2024-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
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मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।
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उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।
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इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।
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'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।
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क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
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रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।