ऐसा क्यों? इसका उत्तर है, स्वामीजी, एकनाथजी और विवेकानन्द शिला स्मारक तीनों का ध्येय एक है। तीनों एक-दूसरे से जुड़े हैं, तीनों की भव्यता एक ही ध्येय की पूर्ति के लिए प्रेरित करती है - 'मनुष्य-निर्माण और राष्ट्र पुनरुत्थान'। श्री एकनाथजी ने स्वामीजी के विचारों को समाज जीवन में चरितार्थ करने के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया। एक कुशल संगठक के रूप में उनकी योजनाएं, गतिविधियां; उनका अध्ययन, सम्पर्क, प्रबंधन और सभी प्रकार के प्रयत्न उसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पित था।
एक जीवन- एक ध्येय
स्वामी विवेकानन्दजी ने कहा था, "मस्तिष्क को उच्च विचारों से, उच्च आदर्शों से भर दो। उन्हें दिन-रात अपने सामने रखो और तब उसमें से महान् कार्य निष्पन्न होगा।... उस आदर्श के बारे में हम अधिक से अधिक श्रवण करें ताकि वह हमारे अन्तःकरण में, हमारे मस्तिष्क में, हमारे रगों में समा जाए । यहाँ तक कि रक्त की प्रत्येक बूंद में चैतन्य भर दें और शरीर के प्रत्येक रोम में समा जाए । हम हर क्षण उसी का चिन्तन करें। अन्तःकरण की परिपूर्णता में से ही वाणी मुखरित होती है और अन्तःकरण की परिपूर्णता के पश्चात् ही हाथ भी कार्य करते हैं।” स्वामीजी के इस विचार को एकनाथजी ने मानो अपने जीवन का अंग ही बना लिया था।
Diese Geschichte stammt aus der Kendra Bharati - November 2022-Ausgabe von Kendra Bharati - केन्द्र भारती.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष